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रोहिंग्या कौन हैं

रोहिंग्या सुन्नी मुसलमानों का वह समुदाय है जो दुनिया के सबसे पीड़ित व शोषित समुदायों में आता है। शोषण की हद यह है कि दुनिया का कोई भी देश रोहिंग्या समुदाय के लोगों को अपनाने को तैयार नही है। ये लोग जिस देश में शरण लेने के लिए जाते हैं वोही देश इन्हे आंतरिक सुरक्षा का हवाला देकर देश छोड़ने का आदेश दे देता है। म्यांमार (जो कि भारत तथा बांग्लादेश का पड़ोसी देश है) के अनाधिकारिक वासी होने के कारण लोग भारत तथा बांग्लादेश में अपनी उपस्थिति वैध या अवैध तरीके से दर्ज करवाते रहते हैं।

सभी देशों का इस समुदाय से मुँह मोड़ने का कारण रोहिंग्या के आंतकवादियों से सबंध होने के विभिन्न दावे तथा संदेह हैं। इस समुदाय का नाम इनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा रोहिंग्या के कारण पड़ा है। भारत में भी करीब 40 हज़ार रोहिंग्या हैं किंतु अन्य देशों की तरह भारत सरकार भी इन्हे आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा मानती है। क्योंकि ये लोग म्यांमार से स्थानांतरित होकर समुंद्र के रास्ते या बांग्लादेश की सीमा से घुसपैठ कर भारत में घुसे थे।

शुरुआत से लगभग 10 लाख के करीब रोहिंग्या म्यांमार तथा इसके आस पास के इलाकों में रहते हैं परंतु इनकी अधिक संख्या म्यांमार में थी। परन्तु 1982 में जब म्यांमार ने राष्ट्रीयता कानून बनाया उस समय रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा समाप्त कर दिया गया। म्यांमार एक बौद्ध बहुसंख्यक देश है वहाँ के बौद्ध समुदाय तथा रोहिंग्या के बीच पुराना विवाद रहा है। यह विवाद उस समय से है जब म्यांमार आज़ाद हुआ था। आपको बता दें कि म्यांमार को आज़ादी वर्ष 1948 में मिली थी।

1982 में नागरिकता समाप्त होने के बाद म्यांमार सरकार पर रोहिंग्या को जबरदस्ती देश से निकालने व अमानवीय व्यवहार करने के आरोप लगते रहे हैं। यद्दपि म्यांमार सरकार इन आरोपों को सिरे से खारिज़ करती रही है।

परन्तु इस मामले ने तूल उस समय पकड़ा जब वर्ष 2012 में सुरक्षाकर्मियों की मौत के पश्चात बौद्ध व रोहिंग्या के बीच विवाद ने दंगे का रूप ले लिया। म्यांमार के राज्य रखाइन (जिसमें रोहिंग्या की अच्छी खासी संख्या है) जो कि बांग्लादेश की सीमा के करीब है; में बस रहे रोहिंग्या को इन दंगों ने इतना प्रभावित किया कि वे अमानवीय स्थितियों से ग्रस्त शरणार्थी कैंपो में रहने को मजबूर हो गए।

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