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पानीपत का तृतीय युद्ध कब हुआ था

प्रथम दो युद्धों के परिणाम ने भारत को मुग़लों के अधीन कर दिया था। पानीपत एक बार फिर इतिहास की दिशा पलटने को तैयार था। तीसरी बार का यह युद्ध 205 वर्षों बाद होने जा रहा था। 1556 में लड़े गए द्वितीय युद्ध के बाद पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी 1761 को लड़ा गया। इन 205 सालों में भारत की स्थिति बदल चुकी थी। मुग़ल कमजोर हो चुके थे तथा धीरे-धीरे उनका साम्राज्य छोटा होता जा रहा था। फलस्वरूप भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा पर सैन्य व्यवस्था कमज़ोर हो गई तथा अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली के लिए भारत पर आक्रमण करने का रास्ता खुल गया। मुग़लों की कमजोरी के कारण मराठों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था वर्ष 1761 तक मराठों के अधिकार में उत्तर भारत के अधिक्तर क्षेत्र थे उनमें वे क्षेत्र भी थे जिन्हें पूर्व आक्रमण में अहम शाह अब्दाली ने जीता था।इस कारण अब्दाली से मराठों की भिड़ंत होना निश्चित था। क्योंकि मराठों का उद्देश्य सम्पूर्ण भारत विजय करना था इसलिए मुग़ल भी उनके खिलाफ हो गए। इस प्रकार इस्लामिक शासकों में मराठों के खिलाफ एकता बन गई। उधर मराठों ने भी जाट तथा राजपूत जैसे हिन्दू राजाओं की मदद लेनी चाही किन्तु उनके मना करने के पश्चात उन्हें अकेले ही मैदान में उतरना पड़ा। अहमद शाह अब्दाली तथा मराठों की सेना 14 जनवरी 1761 को पानीपत के युद्ध क्षेत्र में आमने सामने आ गए। इतिहासकारों के अनुसार पानीपत का तृतीय युद्ध इतिहास में लड़े गए सबसे भीषण युद्धों में से एक था तथा इस युद्ध में बड़ी मात्रा में सैन्य नुकसान दोनों पक्षों को झेलना पड़ा था। 1 लाख 20 हज़ार सैनिकों को लेकर लड़े गए इस युद्ध में बड़ी मात्रा में सैनिक मारे गए थे। अंत में युद्ध का परिणाम अहमद शाह अब्दाली के हक़ में गया तथा उत्तरी भारत के क्षेत्रों पर पुनः उसका अधिकार हो गया। पानीपत के प्रथम तथा द्वितीय युद्ध में जीते मुग़लों के पास अब साम्राज्य के नाम पर दिल्ली का राज्य रह गया था जो कि मराठों के विरूद्ध अपनी सैन्य मदद अब्दाली को देने के कारण उन्हें मिला था। पानीपत के तृतीय युद्ध से सबंधित अन्य सामान्य ज्ञान प्रश्न निम्न हैं:

अहमद शाह अब्दाली कौन था तथा उसने भारत और आक्रमण क्यों किया?
अहमद शाह अब्दाली अफ़ग़ानिस्तान का शासक था तथा नादिर शाह की सेना का सेनापति था जिसकी कुशलता से खुश होकर नादिर शाह ने उसे अफ़ग़ानिस्तान का शासन सौंपा था।

पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार का कारण क्या था?
हिन्दू राजाओं की मदद न मिलना (इतिहासकार मानते हैं कि मराठा सयुंक्त इस्लामिक सेना के खिलाफ कमज़ोर पड़ गए थे यदि उन्हें जाटों तथा राजपूतों का सहयोग मिलता तो युद्ध का परिणाम उलट हो सकता था)

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