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साहित्यिक स्रोत किसे कहते हैं?

भारतीय इतिहास को जानने के लिए जितने भी स्त्रोत हमें प्राप्त होते हैं हमने उन्हें दो भागों में बांट दिया है। पहला है साहित्यिक स्रोत, और दूसरा है पुरातात्विक स्त्रोत। इस आर्टिकल में हम साहित्यिक स्रोतों को समझने की कोशिश करेंगे।

दरअसल वे लिखित रचनाएं जिनसे हमें भारत या विश्व के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है उन्हें साहित्यिक स्रोत कहा जाता है। साहित्यिक स्रोतों के अंतर्गत वैदिक रचनाएं, बौद्ध और जैन साहित्य, महाकाव्य, पुराण, संगम साहित्य, प्राचीन जीवनियां, कविता और नाटक इत्यादि आते हैं। उपरोक्त में से वैदिक साहित्य संसार का सर्वाधिक प्राचीन साहित्य है। वैदिक साहित्य में सर्वाधिक महत्व वेदों का है। वेद चार है ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। यद्द्पि वेद धार्मिक साहित्य के अंतर्गत आता है किंतु इसकी ऐतिहासिक वैधता भी है। चार वेदों में ऋग्वेद सर्वाधिक प्राचीन है इसमें आर्यों के जीवन की संपूर्ण जानकारी मिलती है साथ ही उनकी सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिस्थितियों पर भी प्रकाश डाला गया है। तो वहीं अथर्ववेद में आर्यों की सांस्कृतिक प्रगति के बारे में जानकारी मिलती है। इसलिए यदि हमें आर्यों के बारे में जानना है जो कि हमारे इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग रहे हैं तो हम वैदिक साहित्य को पढ़ सकते हैं।

उपरोक्त साहित्य के बाद ब्राह्मण ग्रंथ आते हैं। इन ग्रंथों में हमें वैदिक मंत्रों का विस्तार से वर्णन मिलता है इसके अलावा यह ग्रंथ तत्कालीन समय के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन का उल्लेख भी करते हैं। महत्वपूर्ण ब्राह्मण ग्रंथों की बात की जाए तो इसमें हम ऐतरेय, शतपथ, गोपथ, पंचदिश इत्यादि का नाम ले सकते हैं। ये सभी ब्राह्मण ग्रंथ ऐतिहासिक सामग्री के रूप में महत्वपूर्ण हैं। ब्राह्मण ग्रंथों के अंतिम भाग के रूप में हम आरण्यक और उपनिषद को देख सकते हैं जिसमें दार्शनिक प्रश्नों पर विचार किया गया है इन प्रश्नों के माध्यम से हमें हिंदुओं के आरंभिक व सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।

ब्राह्मण ग्रंथों के बाद हमें ऐतिहासिक जानकारी सूत्रों के माध्यम से मिलती है। सूत्रों को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है 1. कल्पसूत्र 2. गृह्य सूत्र और 3. धर्म सूत्र। कल्पसूत्र में शास्त्रीय वर्गीकरण के बारे में बताया गया है जबकि गृह्य सूत्र में गृहस्थ से संबंधित विभिन्न संस्कारों और विभिन्न यज्ञों का वर्णन मिलता है। इस सूत्र में तत्कालीन सामाजिक जीवन का वर्णन भी हमें दिखाई देता है। वहीं धर्मसूत्र में राजनीतिक, सामाजिक व वैधानिक व्यवस्थाओं का उल्लेख मिलता है। सूत्रों के अलावा छः वेदांगों (शिक्षा, कल्प, निरूक्त, व्याकरण तथा ज्योतिष) का भी पर्याप्त ऐतिहासिक महत्व है। वेदांगों के अलावा हम वैदिक साहित्य के अंग के रूप में महाकाव्यों को भी देख सकते हैं जिसमें मुख्य रुप से है रामायण और महाभारत का नाम लिया जा सकता है। महाकाव्यों के अतिरिक्त 18 पुराण और स्मृतियां भी वैदिक साहित्य के ही ऐतिहासिक अंग है। इसके साथ ही विभिन्न ऋषियों के नाम से प्रचलित स्मृतियां भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारियां देती हैं।

अब यदि हम बात करें कि सबसे महत्वपूर्ण व विश्वसनीय ऐतिहासिक ग्रंथ कौन से हैं तो ऐसे ग्रंथों में हम कौटिल्य के अर्थशास्त्र का नाम ले सकते हैं इसमें सम्राट चंद्रगुप्त के महामंत्री चाणक्य ने उस काल की राजनीतिक स्थिति, शासन पद्धति और सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक जीवन का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया गया है। दूसरा महत्वपूर्ण ग्रंथ कश्मीरी पंडित कल्हण की राजतरंगिणी है जिसमें कश्मीर के 12 वीं शताब्दी के मध्य के इतिहास पर समुचित प्रकाश डाला गया है। इसके अलावा त्रिपिटक नाम से प्रसिद्ध बौद्धों के धर्म ग्रंथों का भी ऐतिहासिक महत्व है। बौद्ध साहित्य में पाली व संस्कृत भाषा में लिखित असंख्य ऐतिहासिक जानकारियां मिलती हैं। तो वहीं जैन साहित्य से हमें उन पक्षों की जानकारी मिलती है जो वैदिक और बौद्ध साहित्य में पर्याप्त नहीं हैं।

साहित्यिक स्त्रोतों से मिली जानकारी में हम देख सकते हैं कि मौर्य वंश का विवरण हमें अष्टध्यायी में मिलता है, शुंग कालीन भारत की राजनीतिक दशा का विवरण हमें कालिदास के मलविकाग्निमित्र में मिलता है तो वहीं सातवीं शताब्दी के बौद्ध धर्म की अवनति का चित्रण हमें दण्डी की दशकुमार चरितम के माध्यम से मिलता है।

साहित्यिक स्त्रोत क्या हैं : ऐसे लिखित साक्ष्य जो हमें इतिहास की जानकारी देते हैं।

उदाहरण : वेद, पुराण, सूत्र, वेदांग, महाकाव्य, विदेशी विवरण, कहानियां, नाटक व अन्य रचनाएं।

ऐतिहासिक स्त्रोतों के प्रकार : दो, साहित्यिक व पुरातात्विक।

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