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ओजोन की मोटाई को किसमें मापा जाता है?

ओजोन परत से जुड़े हुए अनेक प्रश्न परीक्षाओं में पूछे जाते रहे हैं और इन्ही में से एक प्रश्न है -  ओजोन परत की मोटाई को किसमें मापा जाता है यानी इसे मापने की इकाई क्या है? तो इस प्रश्न को का उत्तर इस वीडियो में हम जानेंगे साथ ही ओजोन परत से जुड़े हुए अन्य तत्व कभी विचार करेंगे जिनसे जुड़े प्रश्न आगे की परीक्षा में पूछे जा सकते है।


रअसल ओजोन एक ऐसी परत है जो हमारे सौरमंडल के स्मताप मंडल नामक एक परत में पाई जाती है ओजोन परत की ऊंचाई की बात करें तो यह 16 किलोमीटर से लगभग 25 किलोमीटर के मध्य मौजूद है और इसकी मोटाई को मापने के लिए एक इकाई का प्रयोग किया जाता है जिसे स' डोब्सन इकाई' के नाम से जाना जाता है। ओजोन परत का मुख्य कार्य यह है कि यह सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट विकिरणों को धरती पर आने से रुकती है जो कि त्वचा के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण है। इस प्रकार ओजोन हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए बनी है इसलिए इसे बचाने हेतु अनेक कार्य समय-समय किए जाते रहते हैं।


जब हम पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर देखते हैं तो वहां पर ओजोन बहुत कम या बिल्कुल ही समाप्त अवस्था में मिलती है। इसीलिए वहां पर वायुमंडलीय गैसों के मध्य एक ऐसा छिद्र की तरह बन गया है जहां ओजोन नही है यानी कि एक ऐसी हमारे वायुमंडल में मौजूद है जहां पर ओजोन उपस्थित नहीं है उस जगह को ओजोन छिद्र के नाम से जाना जाता है और इसकी खोज वर्ष 1985 में हुई थी और निम्बस 7 नामक उपग्रह ने की थी।


बहुत से ऐसे कारण है जिनकी वजह से ओजोन परत समाप्त होती जा रही है और इनमें से क्लोरोफ्लोरोकार्बन सबसे मुख्य है जो ओजोन परत को समाप्त करने का काम करती है। इसके अलावा कुछ अन्य गैसें हैं जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और हेलन इत्यादि ये सब धीरे-धीरे ओजोन की समाप्ति का कारण बनती जा रही हैं यही कारण है कि अमोनिया भी ओजोन परत का क्षरण करता है क्योंकि उपरोक्त गैसों में से कुछ अमोनिया में भी पाई जाती हैं।


यदि ओजोन परत नष्ट हो गई तो यूवी विकिरणें धरती तक बहुत बड़ी मात्रा में पहुंच सकती है जिसके कारण त्वचा का कैंसर होना, कॉर्निया में सूजन होना या डीएनए को नुकसान होने जैसी  स्थितियां पैदा हो सकती हैं। इसलिए ओजोन परत की रक्षा करना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि यह पृथ्वी स्थित जीवन की रक्षा करने के कार्य करती है इसलिए ओजोन छिद्र को भरे जाने को लेकर भी बहुत से प्रयास किया जा रहे हैं।

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