सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

राज्य पर मिलिबैंड के विचारों की चर्चा कीजिए?

राज्य जिसे अंग्रेजी में State कहा जाता है, को लेकर अनेक विद्वानों ने समय-समय पर अपने विचार दिए हैं और उन्हीं में से एक विद्वान रहे हैं राल्फ मिलिबैंड, मिलिबैंड को राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र में बहुत अधिक सम्मान प्राप्त है उनके विचार मुख्य रूप से पुस्तक 'द स्टेट इन कैपिटलिस्ट सोसाइटी' में दर्ज हैं और इसी से संबंधित प्रश्न अक्सर शिक्षा में पूछे जाते हैं तो आइए जानते हैं कि राज्य पर मिलिबैंड के क्या विचार थे. मिलिबैंड ने राज्य की चर्चा करते हुए इसके विभिन्न तत्वों को अपनी पुस्तक में दर्ज किया है उन्होंने माना है कि इन सभी तत्वों से मिलकर राज्य का निर्माण होता है और इनमें से सबसे पहला तत्व जो उन्होंने बताया है वह है सरकार.लेकिन इसके साथ मिकीबैंड ने यह भी स्पष्ट किया है कि सरकार एकमात्र तत्व नहीं है जो भी किसी भी राज्य का निर्माण करता है बल्कि इसके अन्य तत्व भी है इसका दूसरा तत्व है प्रशासनिक तंत्र, जो कि राज्य के निर्माण में अहम भूमिका अदा करता है जिसे हम सामान्यत: सिविल सेवा या नौकरशाही के नाम से जानते हैं. यह प्रशासनिक कार्यपालिका होती है जो तटस्थ रहती है विशेषकर उदारवादी और लोक

राजनीति की परिभाषा क्या है?

राजनीति की परिभाषा को समझना बहुत कठिन हो सकता है क्योंकि राजनीति क्या है यह समझने से पहले हमें यह समझना होता है कि राजनीतिक क्या नही है। रोजाना हम जो समाचार में पढ़ते हैं, टीवी पर देखते हैं और जो गतिविधियां राजनेता करते हैं उसे हम राजनीति समझते हैं लेकिन वह सब राजनीति नहीं है बल्कि इसका एक पहलू मात्र है। हम रोजाना इन गतिविधियों को देखकर यह मान लेते हैं कि राजनेताओं द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलाप ही राजनीति है दरअसल राजनीतिक को यदि शुद्ध रूप में देखा जाए तो राजनीति सत्ता के लिए होने वाले संघर्ष को कहा जाता है लेकिन उससे पार जाकर जब हम इसकी शुद्ध परिभाषा की बात करते हैं तो हम पाते हैं कि दरअसल यह स्वतंत्रता से संबंधित है. राजनीति अपने आप में इतना जटिल विषय है कि इसको लेकर समय-समय पर अनेक विद्वानों द्वारा राजनीति की व्याख्या प्रस्तुत की गई है इसके बावजूद भी हम एक स्पष्ट परिभाषा बनाने में अभी तक सफल नहीं हुए जिसे दुनिया के प्रत्येक स्थान पर लागू किया जा सके लेकिन कुछ परिभाषाएं हैं जो कुछ हद तक हमें राजनीति को समझाने में सफल होती हुई प्रतीत होती है. इनमें से एक परिभाषा है जो मैक्स वेबर ने

राज्य क्या है?

राज्य मूल रूप से राजनीतिक विज्ञान से जुड़ी हुई एक अवधारणा है यदि सरल शब्दों में इस को परिभाषित किया जाए तो हम कह सकते हैं कि राज्य वह इकाई है जो मूल रूप से चार तत्वों से मिलकर बनी होती है यह तत्व हैं निश्चित भूभाग, सरकार, स्थायी जनसंख्या और संप्रभुता। इस आर्टिकल में हम एक-एक कर इन सभी तत्वों को समझ लेते हैं ताकि हमें स्पष्ट हो जाए कि राज्य होता क्या है जो इन सब तत्वों का ही एक संगठित स्वरूप है। सबसे पहले बात करते हैं स्थाई जनसंख्या की। कोई भी संरचना जो राजनीतिक के क्षेत्र या कहीं पर भी बनती है वह मनुष्य से मिलकर बनी होती है। स्थायी जनसंख्या लोगों का वह समूह जो यह तय करता है कि वह एक निश्चित भूभाग पर रहकर जीवन यापन करेगा। यह जनसंख्या बहुत आवश्यक होती है और सबसे पहला तत्व है किसी भी राज्य के बनने के लिए यही से राज्य के बनने की शुरुआत होती है। इसके बाद दूसरा तत्व राज्य का है निश्चित भूभाग। स्थायी जनसंख्या जिस स्थान पर रहती है उसकी सीमाएं निश्चित होनी चाहिए। ऐसा ना हो कि उसकी सीमाएं निरंतर बदलती जा रही हों। राज्य के निर्माण के लिए एक स्थाई जनसंख्या के साथ-साथ निश्चित सीमा की भी आवश्यकता होत

संविधान संशोधन लिस्ट को विस्तार से लिखिए

भारत का संविधान एक संजीव दस्तावेज माना जाता है क्योंकि इसमें संशोधन किया जा सकता है। आज तक भारत के संविधान में 100 से भी ज्यादा बार संशोधन किए जा चुके हैं। उन सभी संविधान संशोधन की लिस्ट हम इस आर्टिकल में जानेंगे और समझने का प्रयास करेंगे कि कौन सा संविधान संशोधन कब हुआ और किस प्रकार के प्रावधान उसमें किए गए। पहला संविधान संशोधन वर्ष 1951 में किया गया था और इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता और संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने को लेकर जो अड़चनें आ रही थी उनको दूर करने का प्रयास किया गया था साथ ही संशोधन के द्वारा संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया था जिसके विषय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर थे। दूसरा संविधान संशोधन वर्ष 1952 में किया गया था तथा इसके अंतर्गत जनगणना के आधार पर लोकसभा में प्रतिनिधित्व को पुनः व्यवस्थित किया गया था। तीसरा संविधान संशोधन वर्ष 1954 में किया गया था इसके अंतर्गत सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में खाद्यान, पशुओं का चारा, कपास और जूट आदि से संबंधित प्रावधान किए गए थे तथा इन्हें सरकार के नियंत्रण में लाया गया था। चौथा संविधान संशोधन

ऋग्वेद की रचना कब हुई

प्रत्येक धर्म का दर्शन किसी ना किसी आधार पर टिका होता है इसी प्रकार हिंदू धर्म का दर्शन जिस आधार पर टिका है उसे वेद कहा जाता है भारत में मुख्य रूप से नौ दर्शन हुए हैं जिसमें से छह दर्शन ऐसे हैं जो मूल रुप से वेदों को मानते हैं और किसी ना किसी प्रकार से उन पर आधारित है लेकिन वेदों में भी एक सबसे महत्वपूर्ण वेद है जिसे ऋग्वेद कहा जाता है तथा जिसे सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत माना जाता है उसी के बारे में इस आर्टिकल में हम बात करेंगे जानेंगे कि वेद कब लिखा गया था और साथ में इसके बारे में कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी जो परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. वैदिक संस्कृत भाषा में लिखा गया ऋग्वेद चारों वेदों में से सर्वप्रथम है इसकी परिभाषा के अनुसार रिचाओं का क्रमबद्ध संग्रह ऋग्वेद कहलाता है मंडलों की बात की जाए तो और ऋग्वेद में मूल रूप से 10 मंडल है और 1028 सूक्त हैं और यह सब मिलकर 10,462 रिचाओं का निर्माण करते हैं वैदिक संस्कृत में लिखित ऋग्वेद को लिखे जाने का समय 1500 से 1000 ईसा पूर्व तक माना जाता है हालांकि ज्यादातर वेदों में विश्वास रखने वाले दर्शन इसे अपौरुष मानते हैं यानी कि वे मा

भारत की पर्वत श्रेणियां जो भारत को दो भागों में बांटती है

भारत में अनेक पर्वत श्रृंखलाएं हैं जिनमें से यदि हम मुख्य रूप से नाम लें तो जम्मू कश्मीर में काराकोरम पर्वत श्रृंखला, वहीं दिल्ली के पास अरावली पर्वत श्रृंखला स्थित है। वहीं यदि दक्षिण भारत की बात की जाए तो पूर्वी तट यानी कोरोमंडल तट पर हमें पूर्वी घाट दिखाई देते हैं तो वही मालाबार तट पर हमें पश्चिमी घाट दिखाई देते हैं। पूर्वी घाट की बनावट लगातार एक लय में नहीं है ये बीच से कटे हुए हैं क्योंकि उनके बीच से कृष्णा और गोदावरी जैसी नदियां बहती हैं तो वहीं पश्चिमी घाट की श्रृंखला एक सार चलती है। इस प्रकार भारत में अनेक पर्वत श्रृंखलाएं स्थित हैं जिनका अपना महत्व है लेकिन मूल रूप से हम जिस पर्वत श्रृंखला की बात कर रहे हैं वह भारत के मध्य में स्थित है और भारत को दो भागों उत्तरी भारत और दक्षिण भारत में बांटती है। उत्तर और दक्षिण भारत के बीच में वैसे तो कई पर्वत श्रृंखलाएं मौजूद हैं जिनमें सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला, मैकाल पर्वत श्रृंखला और कैमूर पर्वत श्रृंखला शामिल है लेकिन यहां स्थित विंध्य पर्वत श्रंखला मूल रूप से भारत को दो भागों में विभाजित करती है उत्तर भारत को दक्षिण भारत। विंध्या पर्वत श्र

भारतीय इतिहास का काल विभाजन किसने किया?

इतिहास अध्ययन करने के लिए समय-समय पर अनेक प्रकार के प्रयोग किए गए हैं। इसमें जो सबसे बेहतरीन प्रयोग कर रहा है वह इतिहास को अलग-अलग कालखंडों में बांट कर समझना। इतिहास को अलग-अलग विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से बांटा है। आज के समय में अध्ययन की दृष्टि से प्रचलित रूप में इतिहास को मुख्य रूप से तीन खंडों में बांटा जाता है। चाहे वह भारत का इतिहास हो या दुनिया का, मुख्य रूप से हम इसे तीन भागों में बांटकर पढ़ते हैं। सबसे पहला भाग है प्राचीन, दूसरा मध्यकालीन और तीसरा आधुनिक। भारत के सापेक्ष में बात की जाए तो भारत का प्राचीन इतिहास प्राचीनतम काल से लेकर 700 ईस्वी तक का रहा है, उसके बाद मध्यकालीन इतिहास 700 से लेकर 1707 ईस्वी तक का रहा है और उसके बाद का जो इतिहास है उसे आधुनिक इतिहास के नाम से जाना जाता है जिसमें अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के बारे में सर्वाधिक बात की जाती है। इतिहास को तीन भागों में बांटने का श्रेय मुख्य रूप से जर्मन इतिहासकार क्रिस्टोफ सेलियरस को जाता है। जिसका जन्म 1638 में हुआ था और 1707 यानी कि वही वर्ष जिस वर्ष भारत का मध्यकालीन इतिहास समाप्त होता है, उस वक्त सेलियरस की

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट