इतिहास में सभी धर्मों का
विशेष महत्व रहा है इन्ही में से एक जैन धर्म है जो कि अपनी अलग शुद्ध छवि व
मानवता हेतु अपने योगदान के लिए विश्वप्रसिद्ध है। जैन धर्म ईश्वर को नही मानता जो
इसे अन्य धर्मो से अलग व तर्कपूर्ण बनाता है। यद्दपि कोई भी धर्म गलत नही है तथा
अपने-अपने आदर्शों पर खरा उतरता है किन्तु भगवान् के अस्तित्व को ही नकारने जैसे
तथ्य जैन धर्म को अलग बनाते हुए प्रतीत होते हैं। इस तथ्य से अलग जैन धर्म
जीवन-मरण चक्र में विश्वास रखता है तथा मानता है कि आत्मा ही मनुष्य शरीर को चला
रही है तथा जैन धर्म मोक्ष प्राप्ति के लिए मार्ग भी दिखाता है ये ही कारण है कि
सभी तीर्थंकरों के विचार व भाव एक दूजे के समान हैं। जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव
जी हुए हैं जिनका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है जैन धर्म में इन्हें “श्री आदिनाथ”
कहा गया है। इस धर्म के सभी तीर्थकरों का एक प्रतीक चिह्न भी है जो कि नीचे
सूचीबद्ध किया गया है। ज्ञात रहे यह पृष्ठ मात्र सामान्य ज्ञान जानकारी हेतु बनाया
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जैन धर्मतीर्थंकर के नाम व
(प्रतीक चिह्न):
1.
ऋषभदेव/ आदिनाथ जी (बैल) - [संस्थापक]
2.
अजितनाथ जी (हाथी)
3.
सम्भवनाथ जी (घोड़ा)
4.
अभिनन्दन जी (बन्दर)
5.
सुमतिनाथ जी (चकवा)
6.
पद्मप्रभ जी (कमल)
7.
सपार्श्वनाथ जी (साथिया)
8.
चन्द्रप्रभु जी (चंद्रमा)
9.
पुष्पदंत जी (मगर)
10.
शीतलनाथ जी (कल्पवृक्ष)
11.
श्रयांसनाथ जी (गैंडा)
12.
वासुपूज्य जी (भैंसा)
13.
विमलनाथ जी (शूकर)
14.
अनन्तनाथ जी (सेही)
15.
धर्मनाथ जी (बज्र दंड)
16.
शान्तिनाथ जी (हिरण)
17.
कुंन्थनाथ जी (बकरा)
18.
अरहनाथ जी (मछली)
19.
मल्लिनाथ जी (कलश)
20.
मुनिसुव्रतनाथ जी (कछुआ)
21.
नमिनाथ जी (नील कमल)
22.
नेमिनाथ जी (शंख)
23.
पार्श्वनाथ जी (सर्प)