चौगान खेल भारत के इतिहास का एक अहम हिस्सा रहा है। यह खेल आज के समय में खेले जाने वाले पोलो से मिलता जुलता था परन्तु बिल्कुल समान नही था। पुराने समय में चौगान राजाओं महाराजाओं का खेल माना जाता था। भारत में इस खेल का आगमन मुस्लिम शासकों के आने के साथ हुआ। चौगान का खेल राजाओं का दल या राजा तथा उसके साथियों का दल मिलकर खेला करते थे।
ईरान से भारत आए इस खेल में घोड़े पर चढ़कर एक हॉकी जैसी स्टीक हाथ में रखी जाती है एक हाथ से घोड़े की लगाम संभाली जाती है तथा दूसरे हाथ से मैदान में फेंकी गई गेंद को हिट किया जाता है। यह एक तीव्र खेल होता था। इस खेल में घोड़े पर अधिक नियंत्रण की आवश्यकता होती थी इस लिए राजा विशेष किस्म के घोड़े केवल चौगान खेलने के लिए राज्य में रखवाता था। राजा के लिए रखे गए इन घोड़ों की देखभाल अलग से की जाती थी। इन घोड़ों का एक पूरा दल होता था। जो चौगान मात्र को समर्पित हुआ करता था।
चौगान एक खतरनाक खेल था क्योंकि इसमें जरा सी भी चूक घोड़ों में टक्कर तथा ऊपर बैठे गुडसवार के गिरने का कारण बन सकती थी। इसलिए इस खेल को जो व्यक्ति खेलता था उसे बहादुर समझा जाता था अपने इसी बहादुरी के दावे को पुख्ता करने के लिए राजाओं में इस खेल के प्रति विशेष रूचि रहती थी। इसके अतिरिक्त मनोरंजन मात्र करना भी इस खेल का उद्देश्य हुआ करता था। गुलाम वंश के शासक कुतुबद्दीन ऐबक की मृत्यु यही खेल खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण हो गई थी।