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भगवान है या नहीं Existence of God in Hindi

नमस्कार दोस्तों... दुनिया में बहुत ही कम ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर हम हां या ना में नहीं दे सकते। हर एक प्रश्न का जन्म उत्तर के साथ ही होता ही होता है और तकरीबन हर प्रश्न का उत्तर हम हां या ना में दे सकने में सक्षम होते हैं। उदाहरण के तौर पर क्या आप पढ़ रहे हैं इसका उत्तर आप हां या ना में दे सकते हैं। क्या आप खाना खा रहे हैं इसका उत्तर हां या ना में दे सकते हैं। क्या पृथ्वी गोल है इसका उत्तर आप हां या ना में दे सकते हैं। क्या चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर चक्कर काटता है इसका उत्तर भी आप हां या ना में दे सकते हैं लेकिन एक चीज हमें यहां पर समझनी होगी कि जिन भी चीजों का उत्तर हम हां या ना में दे सकते हैं वह सभी के सभी भूतकाल में हो चुकी होती हैं या वर्तमान में हो रही होती हैं। भविष्य में आने वाली किसी भी बात का उत्तर हम हां या ना में नहीं दे सकते उसमें एक संदेह की स्थिति का भाव रहता है जैसे कि हम पूछते हैं क्या यह कार्य होगा तो इसका उत्तर हां या ना के बीच में स्थित होता है क्योंकि वह कार्य हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। लेकिन भूतकाल से संबंधित लगभग हर घटना का जवाब हमारे पास होता ही होता है या फिर आने वाले समय में हम उसका जवाब ढूंढ लेंगे कि आखिर यह घटना हुई थी या नही। इसका हमें विश्वास होता है। लेकिन एक प्रश्न ऐसा है जिसके भूतकाल में होते हुए भी हमें उसका उत्तर नही मिल पाया है। ना तो हमारे पास उस प्रश्न का उत्तर था, ना आज है और संभव है कि आने वाले भविष्य में भी उसका उत्तर हमारे पास नहीं होगा। क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर खोजना इंसान की भौतिक सीमाओं से बाहर की बात है और जब-जब यह प्रश्न पूछा आता है तब-तब दुनिया के सभी लोग दो भागों में बंट जाते हैं कुछ लोग इस प्रश्न का उत्तर हां में देते हैं तो कुछ ना में। लेकिन फिर भी दुनिया के हर व्यक्ति को अपने उत्तर पर संदेह रहता है वह इस बात से कभी भी आश्वस्त नही हो पाता कि जो उत्तर उसने दिया है वह वास्तव में सत्य है या नहीं। और दुनिया का सबसे जटिल प्रश्न माना जाने वाला यह प्रश्न है भगवान है या नहीं? इस प्रश्न के बारे में हमने काफी रिसर्च की है तथा कुछ डेटा व तथ्य एकत्रित किए हैं यहाँ हमने उन लोगों के तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया है जो भगवान से जुड़े अपने विचार लोगों के सामने खुलेआम रखते हैं इसके लिए जहां तक संभव हो सका है हमने खोजबीन करने की कोशिश की है इस खोजबीन में हमारे मुख्य प्रश्न थे कि भगवान है या नहीं? है तो क्या है? उसकी परिभाषा क्या है? वह रहता कहां है? और इंसान की जिंदगी पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है? इस पृष्ठ को अंत तक पढ़िए भगवान के बारे में आपके मन में जो बहुत से संदेह हैं वह दूर हो सकेंगे और हो सकता है कि भगवान की एक नई तर्कपूर्ण छवि आपके मस्तिष्क में बने।

भगवान के होने या ना होने का प्रश्न आखिर उठता ही क्यों है?
सबसे पहला प्रश्न हमारे समक्ष यही उठता है कि आखिर भगवान के होने या ना होने का प्रश्न हमारे सामने आता ही क्यों है? दोस्तों... इंसान का मस्तिष्क बड़ा ही जिज्ञासु है और इसकी सबसे बड़ी जिज्ञासा यह जानना है कि हमारे अस्तित्व का कारण क्या है? और हम यहाँ किस लिए जन्में हैं और जो सबसे बड़ी अनबूझ पहेली मनुष्य के मस्तिष्क में है वह यह है कि जो चेतना (Conciousness) इंसान के मस्तिष्क में आती है वह आखिर आती कहां से है और मृत्यु के बाद कहां चली जाती है इस चीज को ढूंढने के लिए इंसान अपने ओरिजिन (मूल) की तरफ भागता है यानी कि वह स्थान जहां से उसका मूल रूप से जन्म हुआ है ताकि वह उस इंसान को खोज सके जिसने सबसे पहले पृथ्वी पर जन्म लिया है जिससे हमें अपने आरंभ व अस्तित्व का कारण पता चल सके। अपने मूल जन्म स्थान को जानने के लिए इंसान इतिहास को खंगालता है जब से इंसान पैदा हुआ है तब से ही वह अपने इतिहास को खंगाल रहा है इस आस में कि उसे अपने वजूद का कारण पता चल सके। और इतिहास को खंगालते-खंगालते आज इंसान इतना जान चुका है कि वह मूल रूप से बंदर की प्रजाति से इंसान की प्रजाति में परिवर्तित हुआ है जो कि लाखों वर्षों के विकास क्रम के चलते संभव हो सका है। लेकिन यहाँ पर इंसान कोे पृथ्वी पर जन्में सबसे पहले मनुष्य से अपने प्रश्न का उत्तर नही मिल पाता क्योंकि दुनिया के सबसे पहले बौद्धिक इंसान यानी कि होमो सेपियन्स को भी अपने वजूद के कारण का पता नही था। इसलिए इंसान अपने उत्तर की खोज में ओर भी पीछे जाता है पीछे जाते हुए वह उस स्थान पर पहुंच जाता है जहां मूल रूप से पृथ्वी पर जीवन का आरंभ हुआ था लेकिन तब भी उसकी जिज्ञासा व प्रश्न ज्यों का त्यों बना रहता है प्रश्न फिर से उठता है कि पृथ्वी पर शुरू हुए इस जीवन के अस्तित्व में होने का उद्देश्य आखिर क्या है और क्यों जीवन मरण का यह चक्र बना हुआ है। लेकिन पृथ्वी पर जीवन शुरू होने की क्रिया उसे उत्तर देने की बजाए ओर अधिक प्रश्नों में धकेल देती है। लेकिन वह अपने अस्तिव के मूल प्रश्न के साथ ओर पीछे जाता है। उससे पीछे जाकर वह पृथ्वी के सृजन तक पहुंचता है और उससे भी पीछे जाकर सूर्य के सृजन तक। इसके बाद इंसान जब और पीछे जाता है तो वह गैलेक्सी (आकाशगंगा) को देखता है परन्तु वहाँ भी अपना उत्तर ना पाकर वह ओर पीछे झांकता है तथा अंत में इंसान देखता है कि ब्रह्मांड एक ऐसे बिंदु से जन्मा है जिसमें महाविस्फोट हुआ था तथा जिस कारण ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था। इस घटना को इंसान बिग बैंग का नाम देता है। लेकिन अस्तित्व और चेतना के प्रश्न का उत्तर उसे यहाँ से भी नही मिलता और इंसान का मन ओर अधिक पीछे जाने को करता है। लेकिन यहाँ उसकी भौतिक सीमाएं आड़े आ जाती हैं। उसकी बुद्धि उसका साथ छोड़ देती है। वह इस बात की कल्पना तक कर पाने में स्वयं को सक्षम नही पाता और नही जान पाता कि बिग बैंग से पहले आखिर क्या था और हमारे ब्रह्मांड के बाहर यदि कुछ मौजूद है तो वह क्या है लेकिन फिर भी कोरी कल्पना के आधार पर इंसान पहले मल्टीवर्स (Multverse) का सिद्धांत देता है जिसके अनुसार वह सोचता है कि हमारे ब्रह्मांड के बाहर इसी जैसे असँख्य ब्रह्मांड यहाँ मौजूद होंगे। लेकिन यह सिद्धांत भी इंसान के मस्तिष्क की जिज्ञासा शांत नहीं कर पाता तो वह अनंतता यानी कि इस ब्रह्मांड के विस्तार के अनंत होने की कोरी कल्पना कर समानान्तर ब्रह्मांड (Parallel Universe) का सिद्धांत देता है जिसके अनुसार जो भी घटना हमारे साथ हो सकती है उसके लिए एक नए ब्रह्मांड का सृजन होता है और इस तरह हर घटना के लिए एक नया ब्रह्मांड उतपन्न होता है जो इसे अनंत बनाता है। लेकिन यहां पर इंसान की बुद्धि फिर से आड़े आ जाती है क्योंकि इंसानी बुद्धि का विकास इस तरह से हुआ है कि वह अनंतता के सिद्धांत को मान ही नहीं सकती क्योंकि आज तक जो भी इंसान ने जाना है, पढा है, सुना है या महसूस किया है वह सब अनंतता के खिलाफ है क्योंकि जिस आधार पर आज तक इंसान ब्रह्मांड को समझ पाया है उसमें यह बात साफ है कि किसी भी चीज का एक आरंभ बिंदु व एक अंतिम बिंदु अवश्य होता है हम सब अपने अंत की तरफ बढ़ रहे हैं और एक दिन समाप्त हो जाएंगे लेकिन अंत के बारे में इंसान ज्यादा नहीं सोचता। परन्तु अपने आरंभ के बारे में वह हमेशा चिंतित रहता है हमेशा अपने आरंभ के बारे में जानना चाहता है अनंतता की बात को खारिज करते हुए इंसान जानना चाहता है कि यह सब जो भी आज अस्तित्व में है वह आया कहां से? इसका कोई शुरुआती बिंदु तो होगा, इसे जिसने बनाया वो कौन था? ये ब्रह्मांड जैसे भी बना इसका कोई कारण तो रहा ही होगा? ऐसे ही बेवजह इतने विशाल ब्रह्मांड के बनने की बात इंसान के गले नही उतरती। वह सोचता है कि जब यहां कुछ था ही नहीं तो यह सब आने का सवाल ही पैदा नही होता। कुछ तो था जिससे सब कुछ उत्पन्न हुआ है। इन सब सवालों से घिरे इंसान के पास जब कोई रास्ता नही बचता तो ऐसे में वह एक ऐसी अनोखी अलौकिक शक्ति की कल्पना करता है जिसने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया है और वह उस अलौकिक शक्ति को नाम देता है "भगवान"। लेकिन ऐसी किसी अलौकिक शक्ति का अस्तित्व मात्र इंसान की कल्पना में हैं इसके बारे में इंसान को ना तो आज तक पता चल पाया है, ना ही वह इसे अच्छे से परिभाषित कर पाया है और ना ही इंसान के पास उस शक्ति के अस्तित्व के बारे में कोई साक्ष्य मौजूद है और यहीं से भगवान के होने या ना होने का प्रश्न जन्म लेता है। साक्ष्य के आधार पर चलने वाले लोग भगवान के अस्तित्व को नहीं मानते तथा मस्तिष्क की जिज्ञासा शांत करने की चाहत रखने वाले ईश्वर को अनंत मानकर श्रद्धा पूर्वक भगवान में गहरा विश्वास रखते हैं। लेकिन इनमें से सही कौन है दरअसल ये दोनों ही नही जानते।

अब इस बिंदु पर यदि हम भगवान के अस्तित्व को नकार दें तो आगे कुछ कहने को नही बचता क्योंकि इंसान की भौतिक सीमा यहाँ समाप्त होती है। लेकिन यदि हम कोशिश करें भगवान की कल्पना करने की। तो अनेको रास्ते सामने खुल जाते हैं तो चलिए जानते हैं कि आखिर भगवान के होने को आज तक कैसे-कैसे तथ्यों का प्रयोग कर सत्य बताने की कोशिश की गई है।

इंसान भगवान को क्यों मानता है?
इंसान 4 कारणों की वजह से भगवान को मानता है यह चार कारण है डर, विश्वास, आस्था तथा अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर पाने की अनंत जिज्ञासा। जिज्ञासा के चलते जब-जब इंसान की बुद्धि में किसी चीज को समझने में उसका साथ नहीं दिया है तब-तब इंसान ने एक ऐसी अलौकिक शक्ति की कल्पना की है जिसे वह सब मालूम है जो इंसान को मालूम नहीं है और ज्ञान से भरी उसी अलौकिक शक्ति को मनुष्य ने अपने अनुसार सदैव एक नाम देने की कोशिश की है हम हिंदी भाषियों ने उस शक्ति को नाम दिया है भगवान। लेकिन इंसान ने सदैव भगवान की कल्पना की है वह ना तो भगवान को कभी देख पाया है और ना ही सही से परिभाषित कर पाया है। इंसान की भगवान को मानने की शुरुआत उसी समय से होती है जब से धरती पर होमो सेपियंस यानी कि ज्ञानी मानव का आगमन हुआ जो कि बाद में मनुष्य रूप में परिवर्तित हुए। होमो सेपियन से लेकर मनुष्य तक विकसित होने में मानवजाति ने बहुत लंबा समय बिताया है तथा लाखों वर्षों का लंबा विकास क्रम पार किया है। अपने विकास कर्म के सफर में इंसान ने हर वस्तु को भगवान का रूप माना जो उसे अचंभित करती थी या डराती थी उदाहरण के तौर पर सूर्य का निकलना इंसान को अचंभित करता था इसलिए उसने सूर्य को भगवान मान लिया, चंद्रमा इंसान को अचंभित करता तो इंसान ने चंद्रमा को भी भगवान मान लिया, तारों में इंसान ने ईश्वर के अंश को देखा, आकाश में चमकते बुध शुक्र और मंगल ग्रह की तारों की अपेक्षा तेज गति को देखते हुए इंसान ने उनका नाम भगवानों के आधार पर रख दिया तथा माना कि ये भगवान के नुमाइंदे हैं जो धरती के ऊपर मंडरा रहे हैं। उस समय इंसान ने माना कि पूरी कायनात जिसमें चंद्रमा, तारे, ग्रह और सूर्य मौजूद हैं वे सब के सब पृथ्वी यानी कि धरती की के लिए ही बने हैं व इस पर बसे इंसानों पे नज़र रख रहे हैं तथा यह सभी भगवान के अंश है। इस चीज का प्रभाव इंसान पर इतना अधिक हुआ कि इंसान ने जब भी भगवान के बारे में सोचा तो उसने आकाश की तरफ देखा और यहीं से भगवान को एक ओर नाम मिला "ऊपरवाला" जिसे हम आज भी आम बोलचाल में देख सकते हैं उदाहरण के तौर पर आप लोगों को कहते सुन सकते हैं कि ऊपर वाला सब सही करेगा, सब ऊपरवाले की कृपा है, ऊपरवाला तुम्हारी रक्षा करे इत्यादि। अब जब इंसान को पूरा यकीन हो गया कि भगवान ऊपर से हम पर नजर रखे हुए हैं तब वह अकेला होते हुए भी डरने लगा उसे यह विश्वास हो गया कि जब उसे कोई नहीं देख रहा होता तब भी भगवान उसे देख रहा होता है इस विश्वास में इंसान पर एक काल्पनिक पाबंदी लगा दी तथा उसके मन में डर का विकास हुआ। अभी इसी डर ने इंसान को उन सभी चीजों में भगवान का रूप देखने पर मजबूर किया जिससे डरता था आसमान में बिजली की कड़क से इंसान डरता था तो उसने इसे देवता मान लिया, धरती पर सांप जैसे जीवों के डसने से इंसानों की मृत्यु होने लगी तो इंसान ने डर कर नाग को देवता मान लिया, भूकंप आया धरती कांपी घर ढहे तो इंसान ने भूमि को देवता मान लिया, आंधी तूफान ने इंसान की जिंदगी तहस-नहस की तो इंसान ने वायु को देवता मान लिया, बाढ़ आई धरती जलमग्न हुई जीवन में विपत्ति आई तो इंसान ने जल को भी देवता मान लिया, इंसान अपने सपनों से डरने लगा तथा सपनों पर विश्वास करने पर मजबूर हो गया, डर की अजीबो गरीब कहानियां बनने लगी और देखते ही देखते इंसान के मन में डर ने पूरी तरह जगह बना ली तथा इससे वह भगवान पर ओर अधिक आश्रित हो गया। अब अच्छे कर्म करने पर इंसान को भगवान पर विश्वास होने लगा और बुरे कर्म करने पर वह भगवान से डरने लगा। इस प्रकार डर ने इंसान को भगवान में प्रगाढ़ विश्वास रखने के लिए मजबूर कर दिया।

अब यदि इंसान ने मान ही लिया है कि भगवान का अस्तित्व है तो यह भी अवश्य जाना होगा कि भगवान क्या है?
इस प्रश्न का उत्तर बहुत से तरीकों से दिया जा सकता है इसलिए "भगवान क्या है" नामक इस सेक्शन को बड़े ही ध्यान से पढ़ें:

भगवान की धार्मिक परिभाषा: धर्म के अनुसार भगवान इस ब्रह्मांड का निर्माता है तथा यह संपूर्ण ब्रह्मांड उसी के अनुसार चलता है उसने ब्रह्मांड को चलाने के लिए कुछ नियम बनाए हैं जिन्हें हम प्राकृतिक नियम कहते हैं तथा इन नियमों पर भगवान का पूर्ण नियंत्रण है तथा वह स्वयं भी इन नियमों से बंधा हुआ है। धर्म के अनुसार भगवान ही इंसान की किस्मत का दाता है तथा वह हर समय इंसान पर नजर रखे हुए हैं तथा जो भी कुछ हो रहा है वह पूर्ण रूप से भगवान की मर्जी से हो रहा है।

भगवान की वैज्ञानिक परिभाषा: वैज्ञानिक तौर पर भगवान की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है विज्ञान न तो भगवान के अस्तित्व को मानता है और न ही से नकारता है क्योंकि विज्ञान को किसी भी बात को परिभाषित करने के लिए तर्क व साक्ष्यों की आवश्यकता होती है तथा भगवान के संबंध में यह दोनों ही विज्ञान के पास नहीं है। इसलिए विज्ञान भगवान को पॉजिटिव एनर्जी (सकारात्मक ऊर्जा) का दर्जा देकर संतुष्ट होने की कोशिश करता है तथा शैतान को एक नेगेटिव एनर्जी (नकारात्मक ऊर्जा) की तरह देखता है। वैज्ञानिक नियमों के अनुसार प्रत्येक क्रिया की बराबर व विपरीत प्रक्रिया होती है इसलिए यदि भगवान है तो शैतान का होना भी आवश्यक है।

एकेश्वरवादी विचार: इस विचार के अनुसार भगवान एक है तथा वह सर्वत्र बुद्धिमान है अर्थात समस्त मनुष्य की बुद्धि एकत्रित होकर भी उस एकेश्वरवादी ईश्वर के समक्ष कुछ भी नहीं है। एकेश्वरवादी विचार समस्त ब्रह्मांड के लिए केवल एक ईश्वर की कल्पना करता है यह विचार धर्म जाति व अन्य वर्गों के आधार पर अनेक ईश्वर की परिकल्पना को सिरे से खारिज करता है।

आस्तिक की नजर में ईश्वर: आस्तिक अर्थात वह मनुष्य जो ईश्वर में श्रद्धा रखता है तथा मानता है कि ईश्वर की मर्जी के बिना एक पत्ता तक नहीं हिल सकता। वह ब्रह्मांड में हो रही किसी भी प्रकार की सूक्ष्म से सूक्ष्म क्रिया से लेकर बड़ी से बड़ी क्रिया के लिए केवल और केवल ईश्वर को ही उत्तरदाई मानता है। उसका मानना है कि मनुष्य के मस्तिष्क में आने वाले विचार भी ईश्वर की मर्जी से आते हैं तथा वह भविष्य में क्या करेगा, भविष्य में क्या निर्णय लेगा व आगे उसके जीवन में क्या होगा यह सब ईश्वर स्वयं तय करता है आस्तिक व्यक्ति ईश्वर में गहन श्रद्धा रख कर चलता है भगवान के दण्ड के भय से बुरे कर्म करने से डरता है।

नास्तिक की नजर में ईश्वर: नास्तिक मनुष्य की नजर में ईश्वर का कोई अस्तित्व ही नहीं है वह मानता है कि जो भी कुछ हुआ है, जो भी कुछ हो रहा है तथा जो कुछ भी आगे भविष्य में होगा यह सब स्वयं चलता है तथा पूर्ण रूप से हमारे कर्मो पर निर्भर है। जो हम आज करेंगे उसी का परिणाम हमें कल मिलेगा इसमें कोई भी अलौकिक शक्ति हस्तक्षेप नहीं करती और ना ही इसके लिए भगवान के अस्तित्व की आवश्यकता है। नास्तिक व्यक्ति तर्कों के आधार पर चलता है तथा साक्ष्यों के आधार पर ही किसी भी बात पर विश्वास करता है नास्तिक व्यक्ति को विज्ञान से तर्क प्राप्त होते हैं तथा विज्ञान ही उसे साक्ष्य प्रदान करता है। इसलिए नास्तिक व्यक्ति ज्यादातर विज्ञान की खोजों के आधार पर ही अपने विचार बनाता है। नास्तिक व्यक्ति कर्म-कांड, पाठ-पूजा तथा धार्मिक कार्यों में कोई विशेष रुचि नहीं रखता तथा इन्हें व्यर्थ मानता है। भगवान के होने या ना होने के प्रश्न में नास्तिक व्यक्ति का उत्तर सदैव ना ही होता है।

धर्मशास्त्र की नजर में ईश्वर: दुनिया के लगभग सभी धर्म एक ही धुरी पर चलते हैं और वह धुरी है ईश्वर। (बौद्ध और जैन जैसे धर्म इसके अपवाद हैं) चाहे दुनिया का कोई भी धर्म है उसमें जो भी शास्त्र आज तक लिखे जा चुके हैं उनका मुख्य उद्देश्य मनुष्य का भगवान से मिलन करवाना ही रहा है। धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान सर्वज्ञता है अर्थात उसे वह सब जानकारियां है जो इस ब्रह्मांड में मौजूद है उसके पास असीमित शक्तियां हैं जिनकी कोई सीमितता नहीं है तथा ये सब मनुष्य की समझ से बाहर है।

अब यहां पर भगवान के बारे में कुछ अन्य विचार दिए जा रहे हैं जोकि भिन्न-भिन्न समुदायों से संबंधित है इनके साथ किसी समुदाय का नाम नहीं लिया जा सकता क्योंकि यह समुदाय छिन्न-भिन्न है तथा अलग-अलग जगह से अपने विचार रखते हैं। इन विचारों को जान लेना आपके लिए आवश्यक है क्योंकि हो सकता है इनमें से कोई विचार आप को तर्कपूर्ण लगे

भगवान के प्रति विचारों की श्रृंखला :

1. भगवान मनुष्य से भिन्न है परंतु सभी मनुष्यों का समावेश है: इस विचार के अनुसार वास्तव में भगवान मनुष्य नहीं है किंतु सभी मनुष्य का समावेश ईश्वर में अवश्य है तथा सभी मनुष्य की बुद्धि ईश्वर की समस्त बुद्धि का एक अंश मात्र है जिस कारण यह कहा जा सकता है कि भगवान मनुष्य से भिन्न है परंतु भगवान में प्रत्येक मनुष्य का समावेश है।

2. बिना लिंग का: इस विचार के अनुसार ईश्वर को लिंग में नहीं बांधा जा सकता अर्थात मनुष्य स्त्री व पुरुष इन दोनों में से किसी भी श्रेणी में एक तरफ नहीं हो सकता तथा दोनों वर्गों में ही भगवान का समान महत्व है व समान अंश है। यह विचार धार्मिक विचारों से प्रभावित प्रतीत होता है और जब एक ईश्वर कि जब बात की जाती है तो यह विचार तर्कपूर्ण प्रतीत होता है।

3. ईश्वर पिता / पुरूष है: हिंदू धर्म के अतिरिक्त बहुत ही कम ऐसे धर्म हैं जिनमें स्त्री जाति को ईश्वर के रूप में दिखाया गया हो इस कारण ईश्वर के पुरुष होने का विचार बहुत से धर्मों में सर्वोपरि रखा गया है इसके अनुसार क्योंकि मनुष्य जाति पर पुरुष का प्रभाव अधिक समझा जाता रहा है इस कारण ईश्वर को पुरुष श्रेणी में रखा गया है यह विचार ईश्वर के से संबंधित विवादास्पद विचारों में से एक है।

4. ईश्वर प्रकृति के बाहर रहकर प्रकृति के अंदर है: इस विचार के अनुसार ईश्वर प्रकृति के अंदर रहता है तथा प्राकृतिक नियमों का पालन करता है परंतु वह प्रकृति से बाहर जाकर इसके नियमों में फेरबदल कर सकता है इस प्रकार इस विचार के अनुसार ईश्वर प्रकृति के बाहर भी है और प्रकृति के अंदर भी। यह विचार उस घर की तर्ज पर बनाया गया है जिसके अंदर रहने वाले मनुष्य आवश्यकता पड़ने पर बाहर से घर की मरम्मत करते हैं ताकि यह और अधिक रहने लायक बन सके इसी प्रकार ईश्वर प्राकृति के अंदर रहता है तथा आवश्यकता पड़ने पर प्रकृति के बाहर जाकर इसकी गलतियों में आवश्यक सुधार करता है।

5. ईश्वर ब्रह्मांड का निर्माता है: इस विचार के अनुसार ब्रह्मांड का निर्माण ईश्वर ने किया है तथा यह विचार धार्मिक तथा आस्तिक लोगों द्वारा अपनाया जाने वाला सबसे लोकप्रिय विचार है। इस विचार के पक्ष में अधिकतर लोग रहते हैं तथा इस विचार को विज्ञान भी सिरे से खारिज नहीं कर सकता क्योंकि ब्रह्मांड के अस्तित्व का मूल आज तक विज्ञान न तो खोज पाया है और न ही समझ पाया है। इसलिए ईश्वर ब्रह्मांड के निर्माता है यह विचार अपने आप में सबसे बड़ा व सबसे माननीय विचार है।

6. ईश्वर स्वयं ब्रह्मांड है: इस विचार के अनुसार ईश्वर स्वयं ब्रह्मांड है तथा हम इस ब्रह्मांड के अंश हैं यह बिल्कुल उसी प्रकार है जैसे हमारा शरीर अनगिनत शूक्ष्म जीवों से मिलकर बना है तथा उन सूक्ष्म जीवों को यह नहीं पता कि वह हमारे शरीर का एक अंश मात्र हैं। ठीक उसी प्रकार इस ब्रह्मांड को ईश्वर माना गया तथा हमें व समस्त सजीव-निर्जीव को इस विशाल शरीर का एक अंश।

7. भगवान अस्तित्वहीन है: भगवान के अस्तित्व को नकारता यह विचार नास्तिक विचारों से मिलता-जुलता प्रतीत होता है परंतु जहां नास्तिक विचार भगवान को मनुष्य जाति के आधार पर नकारता हैं अर्थात नास्तिक मनुष्य मानते हैं कि मनुष्य जीवन में भगवान का कोई हस्तक्षेप नहीं है वही भगवान की अस्तित्वहीनता का विचार संपूर्ण ब्रह्मांड पर व ब्रह्मांड से परे भी भगवान के किसी भी अस्तित्व को सिरे से खारिज करता है तथा इस समस्त ब्रह्मांड के बनने को मात्र एक प्राकृतिक क्रिया मानता है परंतु यह विचार विवादास्पद है।

8. भगवान एक सबसे बड़ी कल्पना है: इस विचार के अनुसार इंसान की कल्पनाओं की एक सीमा होती है तथा वह सीमा भगवान पर जाकर समाप्त होती है। भगवान इंसान की सबसे बड़ी कल्पना है तथा इससे बड़ी कोई भी कल्पना इंसानों द्वारा नही की जा सकती। क्योंकि यह कल्पना समस्त ब्रह्मांड से परे है तथा स्वयं मनुष्य अपनी इस कल्पना को समझ पाने में असमर्थ है अर्थात यह आज तक मनुष्य की इतनी बड़ी कल्पना है कि जिसे मनुष्य खुद भी परिभाषित नही कर सकता।

9. आत्मा ही भगवान है: इस विचार के अनुसार प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का अंश है तथा वह अंश उसकी आत्मा और उसकी चेतना है। इंसान पूरी उम्र जिस भगवान के कल्पना करता है तथा वह जिस भगवान को मानता है वह और कोई नहीं बल्कि उसी के शरीर में स्थित उसकी आत्मा है तथा आत्मा व शरीर के बीच से इस अंतर को समाप्त करने के लिए ही मनुष्य जीवन भर जदोजहद करता है। जब तक ईश्वर का यह अंश मनुष्य के शरीर में होता है वह जीवन चक्र में होता है तथा भगवान का यही अंश है जो मनुष्य के शरीर में मौजूद होता है तथा जिसे वास्तव में मनुष्य पा सकता है।

10. भगवान सर्व गौरवशाली है: भगवान इंसान की प्रशंसा, कर्म व सुखकी चरम सीमा है जिससे आगे नहीं जाया जा सकता इंसान के खुशहाल होने की अंतिम सीमा ही भगवान है जहाँ तक इंसान आज तक नहीं पहुँच पाया है यह विचार भगवान को ब्रह्मांड में स्थित किसी भी संजीव-निर्जीव की तुलना में सर्वाधिक गौरवशाली बताता है परंतु अपने आप में यह विचार अधूरा प्रतीत होता है।

11. ईश्वर व्यक्तिगत है और ब्रह्मांड से बातें कर रहा है: यह विचार ईश्वर को व्यक्तिगत मानता है और मानता है कि भगवान ब्रह्मांड से बातें कर रहा है यानी कि ईश्वर ने इस समय ब्रह्मांड की रचना की है ताकि वह उसके साथ अपने विचारों का आदान प्रदान कर सके तथा अपने विचारों के अनुरूप इसे ढाल सके।

12. भगवान एक आम मनुष्य है: इस विचार के अनुसार भगवान स्वयं एक आम मनुष्य है तथा उसने अपने आप से प्रभावित होकर खुद जैसी ही एक कृत्रिम रचना की है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे एक इंसान कृत्रिम बुद्धि बना रहा है जो कि बिल्कुल इंसान की तरह ही होगी। लेकिन यहां पर बात यह भी है कि जिस प्रकार कृत्रिम बुद्धि इंसान से अधिक शक्तिशाली होने की संभावना है तो क्या भगवान द्वारा बनाए गए मनुष्य उससे अधिक शक्तिशाली नही हो सकते? बहरहाल यह भी एक विवादास्पद विचार है।

13. भगवान को मानवता में कोई रूचि नही है: इस विचार के अनुसार इस विशाल ब्रह्मांड में एक धूल कण के हजारवें भाग से भी छोटी पृथ्वी पर बसी मानवता में भगवान की कोई रुचि नहीं है तथा वह इसके होने या ना होने से प्रभावित नहीं होता।

14. भगवान मानवता के बारे में जागरूक नही है: जिस प्रकार एक विशाल घर में बने सूक्ष्मजीवों के होने न होने से घर का मालिक अनजान होता है ठीक उसी प्रकार इस विशाल ब्रह्मांड में एक धूल कण से भी छोटी पृथ्वी पर बसी मानवीय सभ्यता के बारे में भगवान जागरुक नहीं है इसलिए वह इसके बारे में कोई निर्णय नहीं लेता न उसे इससे कोई फर्क पड़ता है।

15. भगवान ने ब्रह्मांड बनाया और इसे त्याग दिया: जिस प्रकार कोई इंसान अपनी एक रचना कर बाद में उसे भूल कर अपनी अगली रचना बनाने में व्यस्त हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार इस विचार के अनुसार भगवान ने ब्रह्मांड को बनाया और इसे त्याग दिया है और वह किसी अन्य रचना को बनाने में व्यस्त है।

16. ब्रह्मांड भगवान का एक अंश है: यह विचार संपूर्ण ब्रह्मांड को भगवान न मानकर इस ब्रह्मांड को भगवान का एक अंश मात्र मानता है वह मानता है कि भगवान के एक छोटे से अंश में यह संपूर्ण ब्रह्मांड विद्यमान है और इस तरह के असँख्य अंश विद्यमान है।

17. भगवान न अच्छा है न बुरा: इस विचार के अनुसार भगवान न तो अच्छा है न बुरा है। जो लोगों को दुःख या सुख दे। भगवान प्रभावहीन हैं तथा वह मनुष्य जाति पर अपना कोई प्रभाव नहीं डालता।

18. भगवान एक अवधारणा है किंतु महत्वपूर्ण है:  इस विचार के अनुसार भगवान एक अवधारणा मात्र है लेकिन संसार को सुनियोजित तरीके से चलाने के लिए हर मनुष्य में यह अवधारणा होना आवश्यक है इस कारण इस अवधारणा का विकास मनुष्य बुद्धि में हुआ है।

19. भगवान हमारे साथ रह रहे हैं तथा हमारा मार्गदर्शन करते हैं: इस विचार के अनुसार भगवान हर समय हमारे साथ रह रहे हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर भगवान अनेक रूपों में आकर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जिस कारण संसार एक सुनियोजित ढंग से और एक विशेष दिशा की ओर बढ़ रहा है।

20. ईश्वरीय मनुष्यों को नही पता कि वे ईश्वर हैं: इस विचार के अनुसार हमारे साथ ईश्वरीय मनुष्य इसी संसार में रहते हैं तथा उन्हें स्वयं नहीं पता कि वे ईश्वर हैं वे अपने विचारों के प्रयोग से (जो उन्हें सामान्य लगते हैं लेकिन ईश्वरीय होते हैं) अनजाने में दुनिया का मार्गदर्शन करते हैं।

आइए अब जानते हैं महान हस्तियों के भगवान के बारे में क्या विचार हैं:

1. आर्य भट्ट (476 - 550 ई.) : भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है और जो सूर्य और चंद्र ग्रहण लगता है वह कोई ईश्वरीय शक्ति के कारण नहीं लगता और न ही इस पर किसी राहु-केतु का प्रभाव पड़ता है यह एक खगोलीय घटना है जिसे भगवान से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए।

कॉपरनिकस (1473 - 1543 ई.): कॉपरनिकस ने बताया कि पृथ्वी नहीं बल्कि सूर्य ग्रहों का केंद्र है और पृथ्वी सहित सभी ग्रह सूर्य के चक्कर लगा रहे हैं। इससे पहले माना जाता था कि पृथ्वी समस्त ग्रहों और समस्त ब्रह्मांड का केंद्र है इस तर्क ने ग्रहों को देवता मानने और मनुष्य जाति को ब्रह्मांड में सर्वश्रेष्ठ मानने जैसी मान्यताओं पर चोट की।

डार्विन (1809 - 1882) : डार्विन ने मानव विकास का सिद्धांत दिया जो कहता है कि मानव का विकास प्राकृतिक चयन के अनुसार हुआ है तथा वह प्रकृति के अनुसार ढला है। प्राकृतिक कारणों से ही मनुष्य का बौद्धिक विकास स्तर पर पहुंचा कि आज हम इतनी जटिल सरंचनाएँ समझ पाने में सक्षम हुए हैं। इस सिद्धांत ने भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाए।

न्यूटन (1642 - 1727) : न्यूटन ने ग्रहों को एक भौतिक वस्तु बताया तथा उनके घूमने का कारण गुरुत्वाकर्षण को माना। गुरुत्वाकर्षण की खोज न्यूटन ने ही की थी तथा भगवान के विषय में उनके मत के अनुसार उनका मानना था कि ब्रह्मांड की इतनी जटिल व सुव्यवस्थित सरंचनाएँ अपने आप नहीं बन सकती। कुछ तो है जो इन्हें सुव्यवस्थित किए हुए है। न्यूटन के ये वचन भगवान के अस्तित्व के पक्षधर थे।

आइंस्टीन (1879 - 1955) : आइंस्टीन ने इस बारे में कोई सटीक वचन नही दोहराए तथा उन्होंने खुद को भगवान के होने या ना होने से अनजान बताया और एक असमंजस की स्थित का हवाला दिया। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट रूप से कहा कि वे नास्तिक नहीं है।

स्टीफेन हॉकिंग (1942 - 2018) : स्टीफेन हॉकिंग ने कहा कि मनुष्य केवल बंदर की प्रजाति का एक विकसित रूप है इस विकास के लिए किसी अलौकिक शक्ति की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने भगवान के अस्तित्व को साफ तौर पर नकारा।

निष्कर्ष : दोस्तों यहां पर जितने भी विचार दिए गए हैं ये सब केवल विचार हैं ना तो यह खुद को कभी साबित कर पाए हैं, ना कर पा रहे हैं और यकीनन निकट भविष्य में भी ये स्वयं को सत्य सिद्ध नहीं कर पाएंगे। अब यह पूरी तरह आपके विवेक पर निर्भर है कि आप किस विचार को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं। यह रिसर्च करने का हमारा उद्देश्य आपको हर उस विचार के बारे में बताना जो भगवान के बारे में आज तक बनाए गए हैं। आप कभी भी किसी अन्य व्यक्ति के विचारों से प्रभावित न हो। चाहे वह कितनी भी कोशिश कर आपको पीछे लगाने की कोशिश करे। आप स्वयं चिंतन करें कि आपको इनमें से कौन सा विचार सही लगता है उसके बारे में सोचें उसके साथ आगे बढ़ें। इसके अलावा यदि आप उपरोक्त विचारों को छोड़ किसी नए विचार के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं तो भी आप स्वतंत्र हैं। क्योंकि भगवान के बारे में दुनिया में कोई भी व्यक्ति आश्वस्त नहीं है और न ही वह अपने विचारों को सत्य सिद्ध कर सकता है। इसलिए हर एक मनुष्य स्वतंत्र है भगवान के बारे में स्वयं का अपना विचार बनाने के लिए।

तो ये थी दोस्तों भगवान के होने या ना होने के बारे में पूरी रिसर्च... आपको क्या लगता है भगवान है या नही अगर हैं तो कौन सा विचार आपकी दृष्टि में सही है? टिप्पणी कर बताएं।

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