भारत सरकार समय-समय पर कुछ कानून बनाने के लिए अध्यादेश लाती है हालांकि अध्यादेश द्वारा बनाए गए कानून वास्तविक कानून जैसे ही होते हैं लेकिन वहीं ये कानून से थोड़े अलग भी होते हैं। एक अध्यादेश में और एक कानून में बहुत ही बारीकी अंतर होता है और इस अंतर को समझना बेहद आवश्यक हो जाता है क्योंकि अध्यादेश का देश की राजनीति के साथ-साथ देश के संविधान में भी बहुत अधिक महत्व है और यह देश के बड़े-बड़े मामलों को सुलझाने के लिए काम में लाया जाता है। तो चलिए जानते हैं क्या होता है अध्यादेश और क्या है इसके मायने और इसके साथ जुड़े हुए वे सभी प्रश्न जो परीक्षाओं के लिहाज से हमारे लिए जानने आवश्यक हैं।
अध्यादेश क्या होता है?
अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा दिया गया एक ऐसा आदेश होता है जिसके द्वारा राष्ट्रपति संसद में कोई विधेयक पारित करवाए बिना ही कोई कानून बना सकते हैं। यद्यपि अध्यादेश के जरिए बनाया गया कानून अस्थाई होता है लेकिन जितना समय यह कानून अस्तित्व में रहता है उतना समय इसे एक पूर्ण कानून की तरह ही निभाया जाता है अर्थात अध्यादेश के जरिए बने अस्थाई कानून के अंतर्गत भी यदि कोई अपराध करता है तो इस कानून का प्रयोग कर उसे सजा दिलवाई जा सकती है।
अध्यादेश कब लाया जाता है?
जब सरकार किसी आपात स्थिति में किसी कानून को बनाना चाहती है परंतु सदन में बहुमत न होने के कारण या किसी अन्य कारण के चलते वह कानून बना सकने में असमर्थ होती है तब वह अध्यादेश के रास्ते अस्थाई रूप से उस कानून को बना सकती है।
संसद में पारित करवाए बिना कानून बनाना क्या लोकतंत्र के अधिकारों का उलंघन नहीं है?
बिल्कुल नहीं... क्योंकि संसद के दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा सत्र अनुसार ही बैठते हैं और एक सत्र के समाप्त होने के बाद दूसरे सत्र के शुरू होने तक बीच का जो समय होता है हो सकता है इस समय में देश को किसी कानून की आवश्यकता पड़ जाए और वह तत्काल प्रभाव से लागू करना अनिवार्य हो तो ऐसी स्थिति में भारत के संविधान अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वह प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल से सलाह कर कोई भी कानून बना सकता है और यह कानून तब तक अस्तित्व में रहता है जब तक सदन इसे निरस्त ना कर दे या फिर इसकी समय सीमा समाप्त न हो जाए। यह लोकतंत्र के अधिकारों का उल्लंघन नहीं है बल्कि कुछ असामान्य परिस्थितियों से निपटने के लिए संविधान द्वारा लोकतंत्र के अंतर्गत दिए गए अधिकारों में से एक है।
अध्यादेश द्वारा बनाए गए कानून की सीमा क्या है?
अध्यादेश जारी होने के बाद जब सदन सत्र में आता है तो सदन के सत्र में आने की तारीख से लेकर 6 सप्ताह तक अध्यादेश अस्तिव में रहता है यदि इस अवधि के दौरान संसद का कोई भी एक सदन या दोनों सदन इस पर कोई निर्णय नही सुनाते तो यह अध्यादेश 6 सप्ताह बाद समाप्त हो जाता है अर्थात अध्यादेश द्वारा बनाया गया कानून निरस्त हो जाता है। अध्यादेश द्वारा बनाए गए कानून की अधिकतम सीमा सदन के सत्र न शुरू होने की स्थिति में 6 महीने तक पहुँच सकती है और 6 महीने बाद यह कानून स्वतः ही रद्द हो जाता है। इसके अलावा यदि अध्यादेश लागू होने के बाद जब दोनों सदन बैठ जाते हैं तो उन सदनों में से जो सदन बाद में शुरू हुआ है उसके शुरू होने की तारीख से 6 सप्ताह तक अध्यादेश जीवित रहता है। संसद भी इसे किसी भी समय निरस्त कर सकती है। इसके अतिरिक्त यदि राष्ट्रपति को लगे कि अध्यादेश द्वारा लाए गए कानून की आवश्यकता अब नहीं रही है तो वह भी अपने इस अध्यादेश को किसी भी समय वापिस लेने हेतु स्वतंत्र है। फिर भी उपरोक्त किसी भी स्थिति में राष्ट्रपति द्वारा लाए गए अध्यादेश के कानून की वैद्यता 6 महीने से अधिक नहीं हो सकती क्योंकि दोनों सदनों के बैठने के बीच का अंतर कभी भी 6 महीने से ज्यादा नहीं होता और लगभग हर अध्यादेश इस समय सीमा के अंदर ही दोनों सदनों में पेश हो जाता है और सदन इस पर अपना निर्णय सुना देते हैं। यहां पर यह याद रखना भी आवश्यक है कि यदि सदन अपने शुरू होने की तारीख से 6 सप्ताह की समय सीमा समाप्त होने के बाद इस अध्यादेश पर कोई निर्णय सुनाते हैं तो वह निर्णय वैध नहीं माना जाता इस समय सीमा के अंदर ही संसद के दोनों सदनों को निर्णय सुनाना होता है अन्यथा यह कानून रद्द हो जाता है।
क्या अध्यादेश द्वारा राज्य में भी कानून बनाए जा सकते हैं?
जी हाँ... जैसे केंद्र सरकार के से विचार कर राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा कानून बना सकते हैं ठीक वैसे ही राज्य सरकार के साथ विचार विमर्श कर सभी राज्यों के राज्यपाल को भी यह शक्ति प्राप्त है कि वे राज्य स्तर पर कोई कानून बना सकते हैं और उसके लिए भी ऐसी ही सभी शर्तें होती हैं जैसे कि राज्य की विधानसभा और विधान परिषद अवकाश पर चल रही हों उस समय संभव है कि राज्य का राज्यपाल अध्यादेश के जरिए कोई कानून बना सकता है जिस प्रकार राष्ट्रपति को अध्यादेश लाने की शक्ति संविधान का अनुच्छेद 123 देता है उसी प्रकार राज्य में अध्यादेश लाने की शक्ति राज्यपाल को संविधान का अनुच्छेद 213 देता है।
संसद के सदन अवकाश पर हैं इसका क्या अर्थ है?
संसद के सदन अवकाश पर होने का अर्थ होता है कि दो सत्रों के मध्य का समय चल रहा है। कोई भी सदन सत्रों में अपना कार्य करता है जैसे कि बजट सत्र, मानसून सत्र, शीतकालीन सत्र। इनमें से एक सत्र के समाप्त होने के पश्चात अगले सत्र के शुरू होने के बीच का जो समय होता है जब संसद स्थगित होती है समय को सदन का अवकाश कह दिया जाता है अर्थात उस समय सदन अपनी शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर रहे होते और यदि ऐसी स्थिति में कोई कानून बनाने की आवश्यकता पड़ जाती है तो अध्यादेश लाया जाता है।
क्या अध्यादेश लाने के लिए दोनों सदनों का अवकाश पर होना आवश्यक है?
यहां पर यदि हम राष्ट्रपति द्वारा जारी किए जाने वाले अध्यादेश की बात करें तो... आपको पता होना चाहिए कि कोई भी कानून बनाने के लिए उसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में पारित करवाना अनिवार्य होता है। यदि इनमें से एक भी सदन अवकाश पर है तो इसका अर्थ यह होगा कि ऐसी स्थिति में कोई कानून नहीं बनाया जा सकता। इसलिए इन दोनों सदनों में से यदि कोई भी एक सदन अवकाश पर है और राष्ट्रपति के पास यह अधिकार स्वतः आ जाता है कि वे अध्यादेश लाकर कोई भी कानून बना सकते हैं। वहीं राज्यों में अध्यादेश लाने के लिए विधानसभा व विधान परिषद दोनों का अवकाश पर होना आवश्यक है।
अध्यादेश लाकर राष्ट्रपति कौन से कानून बना सकतें हैं?
अध्यादेश के जरिए वे सभी कानून बनाए जा सकते हैं जिन्हें बनाए जाने का अधिकार संसद के पास होता है।
क्या राज्य में राज्यपाल भी अध्यादेश के जरिए किसी भी तरह का कोई भी कानून बना सकते हैं?
राज्य में राज्यपाल अध्यादेश के जरिए वे सभी कानून बना सकते हैं जिन्हें बनाने का अधिकार है विधानसभा के पास होता है इसके अतिरिक्त यदि कोई ऐसा कानून है जिसे बनाने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होती है तब राज्यपाल को अध्यादेश लाने से पहले राष्ट्रपति की आज्ञा लेना अनिवार्य है।
क्या राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश के जरिए लाए गए किसी कानून को चुनौती दी जा सकती है?
अध्यादेश के जरिए लाए गए कानून को ही नहीं बल्कि संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को न्यायिक चुनौती दी जा सकती है लेकिन इसके लिए कुछ मुख्य पहलू देखने होते हैं। जैसे यदि वह कानून संवैधानिक नहीं है, वह मौलिक अधिकारों का हनन कर रहा है या फिर संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है तो संभव है कि उस कानून को न्यायिक चुनौती दी जा सकती है और क्योंकि अध्यादेश के जरिए लाया गया कानून भी एक साधारण कानून ही होता है इसलिए उसे भी न्यायपालिका में चुनौती दी जा सकती है और यदि वह असंवैधानिक होता है, मौलिक अधिकारों के खिलाफ होता है या संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ होता है तो न्यायपालिका उसे निरस्त भी कर सकती है। अर्थात अध्यादेश को चुनौती देकर न्यायपालिका द्वारा निरस्त करवाया जा सकता है।
क्या एक बार संसद द्वारा निरस्त होने के पश्चात वही कानून अध्यादेश द्वारा दोबारा लाया जा सकता है?
जी हाँ... भारत का संविधान संशोधन द्वारा निरस्त किए जाने के पश्चात भी राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वह उसी कानून को अध्यादेश द्वारा अस्थाई रूप से ला सके। हालांकि इसकी वैद्यता हर बार छः माह ही रहेगी।
भारत के किस राष्ट्रपति को सर्वाधिक अध्यादेश लाने के लिए जाना जाता है?
भारत के पांचवें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली को।
एक दिन में सर्वाधिक अध्यादेश लाने का अजीब रिकॉर्ड किस राज्यपाल के नाम है?
एक दिन में सर्वाधिक अध्यादेश लाने का रिकॉर्ड बिहार के पूर्व राज्यपाल जगन्नाथ कौशल के नाम है उनकेे द्वारा 18 जनवरी 1986 को एक ही दिन में 58 अध्यादेश जारी किए गए थे।