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GI Tag Full Form in Hindi जी आई टैग फुल फॉर्म

व्यापार के क्षेत्र में एक सबसे बड़ी चुनौती जो बार बार उभर कर सामने आती है वह है अच्छे उत्पादों की नकल कर उनकी माँग का गलत तरीके फायदा उठाना। जिस कारण एक विशेष उत्पाद से लोगों का विश्वास उठ जाता है तथा उस उत्पाद की मांग में भारी कमी दिखाई देती है जिस कारण मेहनत करने वाले लोगों को भारी हानि उठानी पड़ती है जिस कारण वे मेहनत करने के बावजूद भी एक गरीबी भरी जिंदगी जीने पर मजबूर रहते हैं वहीं उनके उत्पाद की नकल करने वाले गलत तरीके से पैसे कमाते हैं। इसलिए असली उत्पादों की नकल को रोकने के लिए सरकार समय-समय पर बहुत से कदम उठाती है और इन्हीं में से कदम है GI टैग। आइए जानते हैं जीआई टैग की फुल फॉर्म और इसके बारे में पूरी जानकारी। और साथ ही जानेंगे कि उत्पाद तथा उत्पाद बनाने वाले मेहनती लोगों को यह टैग किस प्रकार फायदा पहुँचाता है।

GI टैग की फुल फॉर्म होती है Geological Indication (जियोलाजिकल इंडिकेशन) जिसे हिन्दी मे भौगोलिक संकेत कहा जाता है। यह टैग किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर दार्जिलिंग चाय को GI टैग दिया गया है अर्थात भौगोलिक शब्द दार्जिलिंग को चाय के नाम के साथ जोड़ दिया गया है जो इस प्रोडक्ट का भौगोलिक संकेत है जिसके चलते केवल दार्जिलिंग से आने वाली चाय के साथ ही दार्जिलिंग शब्द जोड़ा जा सकता है यदि कहीं और से आने वाली चाय को दार्जिलिंग चाय कह कर बेचा जाता है तो यह एक अपराध होगा। इस प्रकार GI टैग के माध्यम से दार्जिलिंग चाय का उत्पादन करने वाले लोगों के मूल अधिकारों की रक्षा की जाती है। GI टैग लगभग हर उस स्थान के साथ जोड़ा जाता है जो किसी विशेष उत्पाद को बनाने में महारथ हासिल किए हुए होता है व अपने उत्पाद की गुणवत्ता के कारण नाम कमाता है।

जीआई टैग देने के बाद जब एक क्षेत्र को उसके उत्पाद से जोड़ दिया जाता है तो उस क्षेत्र विशेष में उस उत्पाद को बनाने वाले लोगों को आर्थिक लाभ होता है। अधिकतर मामलों में इस प्रकार के उत्पादों को बनाने वाले क्षेत्र ग्रामीण होते हैं और भारत जो कि एक ग्रामीण देश है तथा कृषि पर आधारित है ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकारों की रक्षा कर अपने मूल को सुदृढ़ करता है। इसके अतिरिक्त GI टैग के चलते वे उपभोक्ता जो उत्पाद की विशेषता पाने की चाह में उसे खरीदते हैं उन्हें भी वही उत्पाद मिलता है जिनके लिए उन्होंने मूल्य चुकाया होता है फलस्वरूप उत्पाद की मांग बढ़ती है तथा घरेलू बाजार के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी वह उत्पाद अधिक मात्रा में बिकने लगता है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ता है व एक विशेष क्षेत्र का नाम अंतराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाने के कारण उस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलता है साथ ही उस क्षेत्र के लोगों को भी अधिक काम मिलता है व निरंतर आर्थिक लाभ होने लगता है।

जीआई टैग दोनों प्रकार के उत्पादों को दिया जा सकता है पहला किसी फसल/ फल/ वनस्पति इत्यादि के लिए जो एक विशेष क्षेत्र में उगती है और दूसरा किसी वस्तु के लिए जो बहुत ही प्राचीन समय से किसी विशेष क्षेत्र में बनाई जा रही हो क्योंकि एक क्षेत्र पर यदि कोई उत्पाद केंद्रित हो जाता है तो वहां के लोगों को वह उत्पाद बनाने में महारथ हासिल हो जाती है जिसके चलते वह त्रुटि रहित उत्पाद बनाने में सक्षम हो जाते हैं जिस कारण खरीदने वाले उपभोक्ता उन्हें पसंद करते हैं उस उत्पाद की माँग बाजार में धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। कुछ उत्पाद जिन्हें GI टैग दिया गया है उनमें हम नाम।ले सकते हैं जैसे: दार्जिलिंग चाय, बनारसी साड़ी, तिरुपति लड्डू, ब्लू पोटरी जयपुर इत्यादि। इसके अलावा अल्फांसो आम (हापुस) के लिए भी महाराष्ट्र के 5 जिलों को जीआई टैग दिया गया है।

भारत में GI टैग मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा दिया जाता है तथा सर्वप्रथम भारत में GI टैग वर्ष 2004 में दार्जिलिंग चाय को दिया गया था। यदि मौजूदा समय की बात करें तो इस समय कुल 325 उत्पादों को जी आई टैग दिया जा चुका है तथा आने वाले समय में इनकी सँख्या और अधिक बढ़ेगी क्योंकि भारत छोटे-छोटे उत्पादों के लिए भौगोलिक क्षेत्रों पर केंद्रित है तथा पीढ़ियों से एक ही उत्पाद बनाने व उगाने में विलक्षण प्रतिभा रखने वाले इन भौगोलिक क्षेत्रों के लोगों के मूल अधिकारों की रक्षा करना, इन्हें आर्थिक लाभ देना व वशिष्ठ उत्पादों की नकल को रोकने के लिए भारत सरकार अधिक से अधिक उत्पादों को GI टैग देने हेतु प्रयासरत है।

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