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ओडिशा की राजधानी क्या है

क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत के 9 वें सबसे बड़े राज्य ओडिशा की राजधानी का नाम "भुवनेश्वर" है। ओडिशा में स्वर्ण त्रिभुज बनाने वाले 3 मंदिरों में से एक "लिंगराज मंदिर" भुवनेश्वर में ही स्थित है तथा इसके अलावा दो अन्य मंदिर जो स्वर्ण त्रिभुज बनाने में सहयोग करते हैं उनमें से पहला है पुरी का जगन्नाथ मंदिर तथा दूसरा है कोणार्क का सूर्य मंदिर। इसके अतिरिक्त जानने योग्य है कि भुवनेश्वर को "मंदिरों का शहर" उपनाम से जाना जाता है क्योंकि यहां पर बहुत बड़ी संख्या में मंदिर स्थित हैं। आज जिस आधुनिक और सुनियोजित भुवनेश्वर को हम देखते हैं यह रूप इसे वर्ष 1948 में दिया गया था भुवनेश्वर का पुनर्निर्माण जमशेदपुर और चंडीगढ़ के साथ ही जर्मन आर्किटेक्ट ओटो कोनिग्सबर्गर द्वारा किया गया था।

यद्द्पि आधुनिक भुवनेश्वर का इतिहास 1948 से शुरू हुआ है लेकिन 422 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बसे इस शहर के इतिहास की जड़ें 262 ईसा पूर्व हुए कलिंग युद्ध तक फैली हैं। कलिंग युद्ध भुवनेश्वर के नजदीक स्थित "धौली" में हुआ था तथा 262-261 ईसा पूर्व हुए इस युद्ध ने भारत के सबसे महान राजा सम्राट अशोक का मन बदल दिया था। ओडिशा का अधिकतर क्षेत्र उस समय कलिंग राज्य के अधीन आता था। भुवनेश्वर में मुख्य रूप से शिव के मंदिर विद्यमान है तथा भगवान शिव के नाम पर भुनेश्वर शहर का नाम पड़ा है। भुवनेश्वर का नाम त्रिभुवनेश्वर से बना है जिसका अर्थ होता है तीनो लोकों के स्वामी।

ब्रिटिश काल के समय वर्ष 1803 में भुवनेश्वर ब्रिटिश हुकूमत के अंतर्गत आ गया था हालांकि उस समय इसे ओडिशा की राजधानी नहीं बनाया गया। वहीं वर्ष 1912 में जब बंगाल का विभाजन हुआ उस समय ओडिशा और बिहार को मिलाकर एक ही प्रांत का निर्माण कर दिया गया उस समय इस सयुंक्त प्रान्त की राजधानी पटना को बनाया गया। बाद में जब वर्ष 1936 में ओडिशा बिहार से अलग हुआ उस समय "कटक" को ओडिशा की राजधानी बनाया गया जो वर्ष 1949 तक ओडिशा की राजधानी रही तथा इसके पश्चात 19 अगस्त 1949 को भुवनेश्वर को ओडिशा की राजधानी घोषित किया गया। भुवनेश्वर को पूर्वी भारत के मुख्य आर्थिक केंद्र के रूप में जाना जाता है इस शहर के अंतर्गत रहने वाले लोगों की संख्या लगभग 8.5 लाख है।

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