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मुद्रास्फीति क्या है इसके प्रकार, प्रभाव व उपाय Types of Inflation in Hindi

मुद्रास्फीति एक ऐसी आर्थिक स्थिति को कहा जाता है जिसमें वस्तुओं का मूल्य निरंतर बढ़ने लगता है अर्थात जिन वस्तुओं के लिए हम पहले कम मूल्य दे रहे थे उन्हीं वस्तुओं के लिए हमें अधिक मूल्य चुकाना पड़ रहा हो और यह मूल्य धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा हो तो ऐसी स्थिति को मुद्रास्फीति कहा जाता है। आम बोलचाल में हम इसे महंगाई भी कह सकते हैं। आइए जानते हैं मुद्रास्फीति के कारण, प्रकार व प्रभाव क्या होते हैं और साथ ही जानेंगेे कि भारत सरकार कैसे मुद्रास्फीति से निपटती है।

मुद्रास्फीति के मुख्य रूप से तीन प्रकार व कारण होते हैं:

1. मांग जनित मुद्रास्फीति
2. लागत जनित मुद्रास्फीति
3. मुद्रा की अधिक छुपाई व प्रवाह

आइए इनको एक-एक करके सरल शब्दों में समझते हैं:

1. मांग जनित मुद्रास्फीति : मांग जनित मुद्रास्फीति एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें मांग बढ़ने के कारण वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाते हैं। उदाहरण के तौर पर हम आलू को एक उत्पाद के तौर पर लेते हैं। मान लीजिए किसी क्षेत्र विशेष में आलू की सप्लाई 100 किलोग्राम प्रति दिन होती है और इसकी मांग भी 100 किलोग्राम प्रति दिन ही है तो यह मुद्रास्फीति का कारण नहीं बनेगा क्योंकि लेकिन सप्लाई मांग के बराबर है लेकिन यदि किसी कारणवश आलू की सप्लाई घट कर 70 किलोग्राम प्रतिदिन राह जाए और मांग 100 किलोग्राम प्रतिदिन पर ही रुकी रहे तो मुद्रास्फीति की स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि लोगों में वस्तु खरीदने के लिए प्रतिस्पर्धा पैदा हो जाएगी जिस वजह से वे वस्तुओं का ज्यादा मूल्य देने के लिए तैयार रहेंगे और ऐसी स्थिति में वस्तुओं के दाम अपने आप बढ़ जाएंगे। इस प्रकार की मुद्रास्फीति को मांग जनित मुद्रास्फीति कहा जाता है।

2. लागत जनित मुद्रास्फीति : लागत जनित मुद्रास्फीति एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें वस्तु के उत्पादन पर खर्च बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप बाजार में वस्तुओं का मूल्य भी स्वभाविक रूप से बढ़ जाता है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए देश में तेल का मूल्य बढ़ जाए तो जिसका प्रभाव ट्रांसपोर्टेशन पर पड़ता है जिसकी वजह से (यदि हम आलू का उदाहरण ही लें) तो दूरस्थ क्षेत्रों तक आलू को पहुँचाने में जो खर्च पहले आता था वह अब बढ़ जाएगा तथा इस बढ़े हुए खर्च को आलू के मूल्य में जोड़ दिया जाएगा। जिस कारण मुद्रास्फीति की स्थिति पैदा होगी। इस प्रकार वस्तुओं के लागत मूल्य के चलते पैदा हुई मुद्रास्फीति को लागत जनित मुद्रास्फीति कहा जाता है।

3. मुद्रा की अधिक छपाई व प्रवाह : यह एक प्रकार की ऐसी स्थिति होती है जो हमारी आम दिनचर्या का हिस्सा तो नहीं है लेकिन बड़े स्तर पर इसका प्रभाव देखा जाता है उदाहरण के तौर पर यदि देश में मुद्रा का प्रभाव बढ़ जाए और मुद्रा की अधिक छपाई होने लगे तो ऐसी स्थिति में लोगों के पास अधिक धन हो जाएगा तथा से अधिक वस्तुएं खरीदने लगेंगे। जिससे कम संसाधनों के चलते सप्लाई पूरी नहीं हो सकेगी। फलस्वरूप वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़ेंगे तथा लोग एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने लगेंगे। वे वस्तुओं का अधिकतम दाम देने लगेंगे। इस प्रकार वस्तुओं के मूल्य में भारी उछाल आएगा। इस प्रकार मुद्रा की छपाई व बढ़ते प्रवाह के कारण भी मुद्रास्फीति की स्थिति पैदा हो सकती है। हालांकि इस प्रकार की स्थिति केवल बड़े उद्योगों जैसे कि भवन निर्माण व व्यापारों में ही देखने को मिलती है।

अब जानते हैं मुद्रास्फीति से निजात कैसे पाई जा सकती है:

मुद्रास्फीति से निजात पाने के लिए पहले यह देखा जाएगा कि मुद्रास्फीति का प्रकार क्या है यदि यह मुद्रास्फीति मांग जनित मुद्रास्फीति है तो वस्तु का उत्पादन बढ़ाए जाने मात्र से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जिसमें मांग को सप्लाई के बराबर किया जाता है। दूसरा यदि मुद्रास्फीति लागत जनित मुद्रास्फीति है तो ऐसे बिंदुओं पर गौर किया जाता है जहाँ से वस्तु का लागत मूल्य घटाया जा सके या फिर सरकार द्वारा सब्सिडी प्रदान की जाती है इस प्रकार लागत जनित मुद्रास्फीति को घटाया जाता है। वहीं तीसरे प्रकार की मुद्रास्फीति जो मुद्रा की अधिकता के प्रभाव के कारण आती है इसे नियंत्रित करने के लिए बैंकों के ऋण पर ब्याज बढ़ा दिया जाता है जिस कारण लोग कम व्यय करते हैं तीसरे प्रकार की मुद्रास्फीति बड़े क्षेत्रों जैसे कि भवन निर्माण इत्यादि में ही पैदा होती है और क्योंकि बड़े क्षेत्र में काम करने के लिए लोग सीधा बैंकों के ऋण पर आश्रित होते हैं इस कारण बैंकों के ऋण पर ब्याज बढ़ाए जाने से इस प्रकार की मुद्रा स्थिति पर काबू पाया जा सकता है।

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