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होली कब और क्यों मनाई जाती है | Holi Festival History & Related Questions in Hindi

भारत त्यौहारों का देश है यहां पर भिन्न-भिन्न समुदायों द्वारा अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। इन त्यौहारों को मनाए जाने का उद्देश्य अपनी उन प्राचीन प्रथाओं को व सांस्कृतिक व्यवहारों को जीवित रखना है जिसका अनुसरण कर आज हम आधुनिक युग में पहुँचे हैं। हर त्यौहार का कोई न कोई महत्व अवश्य होता है तथा लोगों में प्रेम व आपसी भाईचारा बढ़ाने में ये त्यौहार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में मुख्य रूप से बहुत से त्यौहार मनाए जाते हैं इनमें से कुछ त्यौहारों पर सरकार द्वारा राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है। कुछ ऐसे भी त्यौहार हैं जो लोगों की संस्कृति में इतने गूढ़ रूप से रच चुके हैं की इन्हें लोगों के जीवन से अलग करना मुमकिन नही लगता। भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं वह सभी धर्मों में अनेक प्रकार के समुदाय हैं। ये सभी समुदाय अपनी प्रथा व संस्कृति को अपने घरेलू स्तर पर जीवित रखने हेतु स्वतंत्र भी हैं। यही कारण है कि भारत में जहां कुछ त्यौहार राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाते हैं वहीं कुछ ऐसे त्यौहार भी हैं जिनका लुत्फ क्षेत्रीय स्तर लिया जाता हैं। भारत में कुछ त्यौहार राज्य स्तर पर भी मनाए जाते हैं। आज हम जिस त्यौहार बात करने वाले हैं वह पूरे भारत में एक साथ मिलकर मनाया जाता है और इस त्यौहार का नाम है होली। यह त्यौहार भारत के अलावा नेपाल में भी पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है इसके अलावा विश्व के अन्य देशों में जहां हिन्दू समुदाय के लोग रहते हैं इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि होली किस प्रकार का त्यौहार है, यह कब और क्यों मनाया जाता है और कौन से ऐसे तथ्य हैं जो आधुनिक युग में इस त्यौहार को निरंतर मनाए जाने हेतु मजबूत पक्ष रखते हैं।

होली कब मनाई जाती है?

होली का त्यौहार पश्चिमी कैलेंडर के अनुसार मार्च माह में और हिन्दू पंचाग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। हिन्दू व पश्चिमी कैलेंडर में असमानता के चलते इस त्यौहार को मनाए जाने की तारीख बदल जाती है। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष होली के त्यौहार की तारीख में कई दिनों का अंतर आ जाता है। आने वाले वर्षों में होली कब मनाई जाएगी इसकी जानकारी इस प्रकार है:

2019 : 21 मार्च
2020 : 09 मार्च
2021 : 28 मार्च
2022 : 18 मार्च
2023 : 07 मार्च
2024 : 25 मार्च
2025 : 14 मार्च

उपरोक्त सूची में आप देखेंगे कि होली मनाए जाने की तारीख 07 मार्च से लेकर 28 मार्च तक बदल रही है जिससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पश्चिमी कलेंडर के अनुसार मुख्य हिन्दू त्यौहारों की सटीक तारीख का पता लगाना मुश्किल भरा काम है। इसलिए इसके लिए हमें हिन्दू पंचाग का सहारा लेना पड़ता है।

होली क्यों मनाई जाती है?

सीधे शब्दों में बात की जाए तो होली को मनाए जाने का वर्तमान उद्देश्य है आपसी भाईचारा बनाए रखना व अपनी सांस्कृतिक छाप और प्रथाओं को निरंतर चलाए रखना। इसके अलावा होली को मनाए जाने के पीछे बहुत से तर्क दिए जाते हैं और इसके मुख्य तर्कों में अनेक कहानियां आती है जो प्राचीन काल से लोग सुनते आ रहे हैं। यह कहानियाँ धर्म ग्रंथों में लिखी गई हैं। इनमें से कुछ कहानियों को लोगों द्वारा मुख्य रूप से तरजीह दी जाती है ऐसी ही एक कहानी जो होली के बारे में सर्वाधिक प्रचलित है तथा इसके सभी तथ्यों के साथ गहरा संबंध बनाती है वह है राक्षस राजा हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद की कहानी। आइए इस कहानी को एक नजर में देखते हैं।

हिन्दू मान्यताओं व पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप या हिरण्यकशिपु एक असुर राजा था जिसके भाई हिरण्याक्ष ने स्वर्ग पर आक्रमण किया था व पृथ्वी पर भयंकर तबाही मचाई थी। जिस कारण भगवान विष्णु ने वराहावतार में आकर हिरण्याक्ष का वध किया था। इस बात से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या कर अमरता का वरदान पाने की कोशिश की लेकिन ब्रह्मा ने कहा कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित ही होगी तुम्हे अमरता का वरदान देना प्रकृति के नियमों के विरूद्ध है लेकिन तुम ऐसी स्थितियों के लिए वरदान अवश्य ले सकते हो जिनमें तुम मरना नही चाहते इस पर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा से कहा कि "मुझे ऐसा वर दीजिए कि ना मैं रात में मरूं, ना दिन में... ना मुझे नर मार सके, ना नारी... ना मुझे पशु मार सके ना पक्षी... ना मुझे देवता मार सके, ना राक्षस... ना मुझे अस्त्र मार सके, ना शस्त्र... ब्रह्मा ने हिरण्यकश्यप को यह वरदान दिया कि वह अपने द्वारा कही गई किसी भी स्थिति में नही मरेगा। यह वरदान पाकर हिरण्यकश्यप को लगा कि वह अमर हो गया है। अब उसने पूरी पृथ्वी पर अपनी तबाही फैलानी शुरू कर दी। और सभी को विष्णु की जगह अपनी पूजा करने पर विवश किया। यदि कोई उसकी पूजा नही करता या भगवान विष्णु की पूजा करता हुआ मिलता तो हिरण्यकश्यप के सैनिक उसे मार देते थे। इस डर में सभी ने हिरण्यकश्यप की पूजा करना आरंभ कर दिया।

लेकिन जब हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद पैदा हुआ तो उसने हिरण्यकश्यप की पूजा करने से मना कर दिया और विष्णु भक्त बनकर विष्णु की पूजा करना आरंभ कर दिया वह सदैव विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। अपने पुत्र के इस व्यवहार से हिरण्यकश्यप क्रोधित हो उठा और उसने प्रह्लाद को मारने का निर्णय कर लिया। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने की बहुत कोशिशें की सर्वप्रथम उसने प्रह्लाद को सांप के तहखाने में छोड़ दिया परंतु वहां पर प्रह्लाद को कुछ न हुआ, इसके पश्चात हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को हाथी के पांव के नीचे कुचलवा दिया लेकिन वहां पर भी भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की, इसके पश्चात प्रह्लाद को पर्वत से नीचे गिरा दिया गया लेकिन भगवान विष्णु ने स्वयं आकर प्रह्लाद की रक्षा की। जब सभी प्रकार के प्रयत्न्न कर हिरण्यकश्यप हार गया तब उसकी बहन होलिका ने प्रह्लाद को मारने का निर्णय किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह कभी आग में नहीं जलेगी उसने अपने भाई से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाएगी और जिससे प्रह्लाद आग में जलकर मर जाएगा लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी तो विष्णु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद तो बच गया लेकिन होलिका उसी आग में जल कर मर गई। होलिका के जल कर मरने की इसी घटना को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है और होलिका के नाम पर ही इस त्यौहार का नाम होली रखा गया है। जो लकड़ियों का ढेर होली के दिन जलाया जाता है वह होलिका के जलने का प्रतीक है। यही कारण है कि होली का त्यौहार 02 दिन का होता है जिसमें पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगों से खेला जाता है।

जब होलिका के प्रयत्नों के बाद भी प्रह्लाद को मारा नहीं जा सका तो हिरण्यकश्यप ने और अधिक क्रूरता से प्रह्लाद को मारने की कोशिश की। तब भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया तथा ऐसी स्थितियाँ उतपन्न की जहां न दिन था न रात, और ऐसा रूप धारण किया जो न तो पूर्णतः पशु था न पक्षी न नर न नारी, और अपने शस्त्रों का प्रयोग न के नरसिंह ने हिरण्यकश्यप अपनी गोद में रखकर अपने नाखूनों से मारा। इस प्रकार हिरण्यकश्यप का नाश हुआ और लोगों ने रंग उड़ाकर खुशियां मनाई। इसी उपलक्ष्य में आज भी लोग एक दूसरे पर रंग उड़ा कर होलिका और हिरण्यकश्यप की मृत्यु का जश्न मनाते हैं। यह कहानी दिखाती है कि होली मनाने का उद्देश्य लोगों में सच्चाई के प्रति उत्साह व बुराई के प्रति घृणा पैदा करना है।

होली किन किन देशों में मनाई जाती है?

होली मुख्य रूप से भारत में मनाई जाती है और भारत ही होली का मूल देश है जहां से इसकी शुरुआत हुई लेकिन इसके अलावा भी बहुत से देश हैं जहां होली बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। भारत के बाद नेपाल में होली एक मुख्य त्यौहार है क्योंकि नेपाल की 80% से ज्यादा जनसंख्या हिन्दू धर्म को मानती है। भारत और नेपाल के बाद बांग्लादेश व पाकिस्तान का नाम आता है जहां पर अल्पसंख्यक हिन्दू अपने स्तर पर होली का लुत्फ उठाते हैं और इस त्यौहार को पूरे हर्षोल्लास से मनाते हैं। इसके अलावा वो स्थान जहाँ पर ब्रिटिश शासन के दौरन भारतीयों को गिरमिटिया मजदूर बनाकर भेजा गया था वहाँ पर भी अपनी सासंस्कृतिक पहचान को संजोय लोग होली का त्यौहार मनाते हैं ये स्थान हैं फिजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद व टोबैगो, दक्षिणी अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम इत्यादि। इसके अलावा गल्फ देशों, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका व कैनेडा जैसे देशों में बसे भरतीय भी इस त्यौहार को मनाते हैं।

होली कैसे व कितने दिन तक मनाई जाती है?

होली मुख्य रूप से दो दिन का त्यौहार है पहले दिन होलिका दहन किया जाता है व दूसरे दिन रंगों के साथ खेला जाता है। होलिका दहन में शाम के समय लकड़ियों का ढेर लगाकर उसे जलाया जाता है व मिठाईयां इत्यादि बांट कर अपने-अपने तरीके से लोग जश्न मनाते हैं। कुछ स्थानों पर नाच गाने का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। दूसरे दिन लोग रंग, पानी, पिचकारी, गुब्बारे इत्यादि का प्रयोग कर एक दूसरे को रंगते हैं। यह त्यौहार सुबह से लेकर दोपहर तक मनाया जाता है उसके बाद नहा-धोकर विश्राम किया जाता है व शाम को मिठाईयां बांटकर लोग खुशी का इजहार करते हैं। इस प्रकार यह त्यौहार संपन्न होता है।

होली को अन्य किन नामों से जाना जाता है?

भारत बहुत बड़ा देश है और यहाँ पर भाषा के आधार पर 29 राज्य बनाए गए हैं। होली का त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन अलग-अलग राज्यों व क्षेत्रों में इसका नाम अलग-अलग हो सकता है। जैसे कि पंजाब में होली से अगले दिन को "होला मोहल्ला" कहा जाता है, हरियाणा में इसे फाग कहा जाता है, यूपी व बिहार के इलाकों यह फगुआ के नाम से जाना जाता है। मणिपुर में होली से मिलता जुलता त्यौहार याओसांग मनाया जाता है। इस प्रकार राज्यों में होली को अलग तरीके से व अलग नाम से मनाया जाता है। हालांकि एक दूसरे को रंग लगाने की परंपरा सभी राज्यों में होती है चाहे फिर वे इस किसी भी नाम से क्यों न मना रहे हों। लेकिन फिर भी भारत की 50% से अधिक हिंदी भाषी आबादी इस त्यौहार को होली नाम से जानती है। होली के हिंदी भाषा में नाम होलिका व होलाका भी हैं। वहीं होली से अगले दिन को फाग, फगुआ, धुरखेल, धूलिबंधन, धुरड़ी इत्यादि नाम से जाना जाता है।

होली के रंग कैसे बनाए जाते हैं?

होली के रंग रसायनों का मिश्रण होते हैं और यह पता लगाना काफी मुश्किल होता है कि किस रसायन का प्रयोग कर कौन सा रंग बनाया गया है। हालांकि पुराने समय में होली के रंग फूलों से बनाए जाते थे इन फूलों को पंगारा, पलाश, गुलमोहर इत्यादि से हासिल किया जाता था। परंतु शहरीकरण होने व जंगलों के कटने के कारण इन फूलों की प्रजातियां दुर्लभ हो गई हैं जिस कारण अब रंग रसायनों का प्रयोग कर बनाए जाते हैं। यद्द्पि गुलाल (या अबीर) जो होली का मुख्य रंग है को हल्दी या नील इत्यादि (जो खेतों में उगते हैं) का प्रयोग कर बनाया जाता है जो त्वचा के लिए हानिकारण नही बल्कि फायदेमंद होता है।

हर्बल कलर किसे कहा जाता है?

जैसा कि ऊपर बताया की होली के रंगों को बनाने के लिए मौजूदा समय में रसायनों का प्रयोग किया जाता है यदि रसायनों के प्रयोग का रंग बनाए जाते हैं तो उन्हें हर्बल कलर नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यह आपकी त्वचा के साथ रासायनिक अभिक्रिया कर उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं लेकिन यदि इसके स्थान पर रंगों को प्राकृतिक रूप से (फूल या खेती इत्यादि से) प्राप्त किया जाए जिनमें कोई भी अतिरिक्त रसायन नहीं मिलाया जाता तो इसे हर्बल कलर या नेचुरल कलर कहा जाता है और यह कलर हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं।

होली के बारे में रोचक तथ्य :

1. होली में किए जाने वाले होलिका दहन दक्षिण भारत में कामा दनहम के नाम से जाना जाता है।

2. ओडिशा में होली को दोलाजाता के नाम से जाना जाता है।

3. होली का त्यौहार सर्दियों के अंत व वसंत की शुरुआत का प्रतीक है।

4. बरसाना नामक स्थान पर खेली जाने वाली लठमार होली पूरे भारत में प्रसिद्ध है।

5. नेपाल में बौद्ध धर्म की नेवार जाति होली को धूमधाम से मनाती है।

6. त्रिनिदाद और टोबैगो में होली का अवकाश नही होता इसलिए यहां के लोग होली के त्यौहार को होली के नजदीकी रविवार के दिन खेलते हैं।

7. गुयाना देश मे भी होली धूमधाम से मनाई जाती है और वहां पर इसे फगवा नाम से जाना जाता है।

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