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वेनेजुएला संकट क्या है | Venezuela Crisis in Hindi

मौजूदा समय में दक्षिणी अमेरिका में बसे एक देश वेनेजुएला में गंभीर आर्थिक संकट आया हुआ है जिस कारण वेनेजुएला के लोग आपस में हिंसक बर्ताव कर रहे हैं और रोजमर्रा के खाने की वस्तुओं के लिए उन्हें एक दूसरे पर हमला करके छीना झपटी करनी पड़ रही है। आलम ये है कि खाना खाने के लिए लोगों के पास पैसे नही हैं और एक किलो चावल के लिए लोग एक दूसरे की जान लेने पर उतारू हो रहे हैं। वेनेजुएला की हालत इस समय इतनी बुरी है कि वहां पर पूरा आर्थिक व सामाजिक ढांचा तहस-नहस हो चुका है और वहां की सरकार इसे नियंत्रित कर पाने में असफल प्रतीत हो रही है जिस कारण वेनेजुएला में आर्थिक संकट के साथ ही राजनीतिक व सामाजिक संकट भी पैर पसार रहा है। इन संकटो के चलते वेनेजुएला में एक साधारण व शांत जीवन जी पाना लगभग नामुमकिन होता जा रहा है। लेकिन यदि आप वेनेजुएला का इतिहास देखेंगे तो आप पाएंगे कि वेनेजुएला दुनिया का वह देश है जिसके पास सर्वाधिक ज्ञात तेल के भंडार हैं व एक समय यह दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक था। परंतु इतना अमीर देश होने के बावजूद भी आखिर आज वेनेजुएला की इतनी बुरी हालत क्यों हो चुकी है? आज हम इस आर्टिकल में इसी बात का निष्कर्ष निकालेंगे और जानेंगे कि वेनेजुएला संकट क्या है और क्या कारण है जिनकी वजह से वेनेजुएला की आज इतनी बुरी हालत हो चुकी है जिसके चलते वहां पर सामान्य जीवन जीना भी मुश्किल हो चुका है।

वेनेज़ुएला की मौजूदा स्थिति इतनी बदत्तर क्यों हो चुकी है?
वेनेजुएला की मौजूदा स्थिति को समझने के लिए हमें वेनेजुएला का इतिहास देखना होगा। 1922 से लेकर आज तक वेनेजुएला देश में एक चीज ऐसी है जो कभी नही बदली; और वह है वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था का केवल और केवल तेल के भंडारों पर आश्रित रहना। वेनेज़ुएला की पूरी अर्थव्यवस्था वहां पर पाए जाने वाले प्राकृतिक तेल के भंडारों पर टिकी हुई है। वेनेजुएला में सर्वप्रथम वर्ष 1922 में बड़े तेल के कुएं की खोज हुई थी जिसके बाद मानो वहां के लोगों के जीवन का स्वर्णकाल शुरू हो गया। तेल के कुओं का भंडार मिलने के बाद वेनेज़ुएला के लोगों को अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए कोई विशेष कार्य करने की आवश्यकता नहीं रही। वे केवल अपनी भूमि से निकलने वाले तेल को अन्य देशों को बेचकर अपने पूरे देश की अर्थव्यवस्था को चला सकते थे। देश में तेल के भंडार इतनी बड़ी मात्रा में थे कि वर्ष 1928 तक वेनेज़ुएला ज्ञात तेल के भंडारों वाला दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश बन चुका था और इतना अधिक तेल बेचने के कारण वेनेजुएला दुनिया के सबसे अमीर देशों में शामिल हो गया था। और जिस समय द्वितीय विश्व युद्ध हुआ उस समय वेनेज़ुएला इतना अधिक तेल बेच रहा था कि उसे विश्व के देशों द्वारा उठाई जा रही मांग की पूर्ति करने के लिए रोजाना 10 लाख बैरल तेल का उत्पादन करना पड़ रहा था जो कि हाथों-हाथ बिक भी रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध के समय दुनिया में वेनेजुएला का कोई भी प्रतिस्पर्धी नहीं था क्योंकि किसी अन्य देश में इतने बड़े तेल के भंडार नहीं खोजे गए थे जिसका प्रयोग कर वे वेनेजुएला के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें जिस कारण वेनेज़ुएला निश्चिंत हो चुका था कि उसकी आर्थिक व्यवस्था को यदि पूरी तरह से तेल निर्यात पर टिका दिया जाए तो भी उसे किसी तरह की कोई समस्या नहीं आएगी लेकिन वेनेज़ुएला का अनुमान 1950 के दशक में गलत साबित होने लगा।

1950 के दशक में मध्य पूर्वी देशों में तेल की खोज होने लगी थी इन देशों में मुख्य रूप से ईरान, इराक, कुवैत तथा सऊदी अरब शामिल थे। जब इन देशों में तेल के भंडार मिलने लगे तो इन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए इतनी बड़ी मात्रा में तेल का उत्पादन कर उसे बेचना शुरू कर दिया कि दुनिया भर में जितनी भी तेल की मांग थी उससे अधिक तेल की सप्लाई होने लगी थी। फलस्वरूप तेल की कीमतें गिरने लगी क्योंकि जब किसी चीज की मांग उसकी सप्लाई से कम हो जाती है तो बेचने वालों में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है जिस कारण वे एक दूसरे से कम कीमत पर वस्तुओं को बेचते हैं और 1950 के दशक में तेल निर्यात के साथ भी यही हुआ। तेल की कीमतों के चलते वेनेज़ुएला जो पूरी तरह से तेल पर निर्भर देश था को अपनी अर्थव्यवस्था पर खतरा महसूस हुआ इसलिए वर्ष 1960 में वेनेजुएला ने ईरान, इराक, कुवैत और सऊदी अरब के साथ मिलकर ओपेक (OPEC) अर्थात "आर्गेनाईजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज" की स्थापना की जिसके तहत यह तय हुआ कि सभी तेल निर्यातक देश एक सीमित मात्रा में तेल का उत्पादन करेंगे ताकि मांग के अनुसार तेल अन्य देशों को बेचा जा सके जिससे तेल की कीमतें उच्च स्तर पर बनी रहें। लेकिन OPEC द्वारा बनाई गई तेल उत्पादन सीमाओं की अच्छी तरह से देख रेख नहीं हुई और कुछ तेल निर्यातक देश OPEC की सीमाओं को तोड़कर तेल का अधिक उत्पादन व निर्यात करते रहे जिस वजह से तेल के दाम समय-समय पर गिरने व उठने लगे लेकिन फिर भी इन सभी देशों की अर्थव्यवस्था ठीक से चल रही थी क्योंकि उस समय भारत व चीन जैसे विकासशील देशों को बड़ी मात्रा में तेल की आवश्यकता थी। इन वर्षों में वेनेज़ुएला ने कभी भी कृषि या उद्योग इत्यादि के क्षेत्र को विकसित करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया बल्कि वह केवल तेल से संबंधित उत्पादन व तेल की बिक्री पर ही अपना पूरा ध्यान बनाए रखना चाहता था और देश के लोगों को धन व बेरोजगारी से सबंधित जितनी भी समस्याएं थी उनका निवारण वेनेज़ुएला की सरकार उस पैसे से करना चाहती थी जो पैसा उसे तेल बेच कर मिलता था।

लंबे समय तक यह सब ठीक से चलता रहा और फिर वर्ष 1999 में वेनेजुएला के लोगों का द्वितीय स्वर्णयुग आया जब ह्यूगो चावेज़ (Hugo Chavez) वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति बने और उन्होंने अपने देश के लोगों के लिए वह सब कुछ किया जो किसी देश की सरकार को अपनी लोगों के लिए करना चाहिए। उन्होंने देश को लोगों को रोजगार, पेंशन, सुख-सुविधाओं व समाजवाद से जुड़े सभी लाभ दिए। लेकिन उन्होंने अपने देश में लोगों की जरूरत पूरी करने, उन्हें पेंशन देने व उन्हें नौकरी देने के लिए उस पैसे का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जो पैसा वेनेज़ुएला की सरकार को तेल बेच कर मिलता था इसका प्रभाव यह हुआ कि वेनेजुएला की अधिकतर जनसंख्या पूरी तरह से तेल के निर्यात पर आश्रित हो गई देश में बेरोजगारी को कम करने के लिए वेनेजुएला के राष्ट्रपति ने ऐसे लोगों को तेल क्षेत्र में नौकरी देनी शुरू कर दी जिनकी तेल क्षेत्र को आवश्यकता भी नहीं थी। इसके चलते वे लोग बिना कुछ कार्य किए वेतन पाने के आदी हो गए और उन्होंने अपने अन्य शारीरिक व मानसिक कौशल को बढ़ाना उचित नहीं समझा। वेनेज़ुएला देश की सरकार व अधिकतर लोग दोनों ही तेल भंडार व तेल बिक्री पर आश्रित थे फलस्वरुप 1922 से लेकर वर्ष 2013 (राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ की मृत्यु तक) जितनी भी पीढ़ियां आई उन्होंने कोई अन्य कौशल न सीखकर केवल तेल के क्षेत्र में ही अपना ध्यान केंद्रित करना जारी रखा। लेकिन वर्ष 2013 के बाद वेनेज़ुएला का बुरा वक्त शुरू होने लगा। तेल की कीमत भारी स्तर पर गिरने लगी।

तेल की कीमतें गिरने से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी तेल की कीमतें इसलिए गिर रही थी क्योंकि दुनिया में तेल की मांग उसकी पूर्ति (सप्लाई) से कम हो चुकी थी और क्योंकि वेनेज़ुएला किसी अन्य क्षेत्र में अपने कौशल का विकास नहीं कर सका था और उसकी अर्थव्यवस्था का 95% हिस्सा तेल निर्यात पर ही निर्भर था इसलिए तेल की तेजी से गिरती कीमतों ने वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था को बहुत ही बड़े स्तर पर हानि पहुंचाई। तेल की कीमतें गिरने के कारण वेनेजुएला के रिवेन्यू (आय) में भारी कमी आई जिसके चलते सरकार द्वारा वेनेज़ुएला के लोगों को दी जाने वाली सुविधाएं व नौकरियां धीरे-धीरे समाप्त होने लगी जिस कारण लोगों ने वहां की मौजूदा सरकार का बहिष्कार करना शुरू कर दिया और क्योंकि सरकार के पास तेल निर्यात के अलावा रिवेन्यू का कोई अन्य साधन नहीं था इसलिए सरकार भी इस विषय में ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही थी फलस्वरूप वेनेजुएला की करेंसी की कीमत भी गिरने लगी। और करेंसी की कीमत गिरने की वजह से वेनेज़ुएला के लिए बाहरी देशों से समान आयात करना महंगा हो गया। वेनेज़ुएला को बाहरी देशों को डॉलर में कीमत अदा करनी पड़ती है जिसके चलते देश में महंगाई बहुत तेजी से बढ़ रही है।

अब जहां लोगों के पास नौकरी नहीं है और न ही उन्हें कोई सरकारी सहायता मिल रही है और ऊपर से महंगाई इतने उच्च स्तर पर पहुंच चुकी हैं तो वहां के लोग और बेरोजगार युवा जो पहले तेल क्षेत्र में कार्य कर रहे थे। हिंसक होकर लूटपाट कर रहे हैं क्योंकि उनके पास वेतन पाने का कोई साधन नहीं है और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने और भोजन खरीदने के लिए पर्याप्त धन भी नहीं है। इसलिए वेनेजुएला की आम जनता में आपसी छीना झपटी शुरू हो चुकी है और क्योंकि लोग सरकार के खिलाफ बहिष्कार पर उतर आए हैं और विपक्ष भी वेनेजुएला की सरकार को मौजूदा स्थिति के लिए जिम्मेदार मान रहा है इसलिए वहां पर सत्ता पलटने की कोशिशें होने लगी हैं। जिस कारण सरकारी तंत्र और जनता आमने सामने आ चुके हैं इसीलिए वहां पर सरकार का कोई विशेष नियंत्रण नहीं रह गया है और वे लोग जो नौकरी न होने और महंगाई अधिक होने के चलते भूखे मरने के लिए छोड़ दिए गए हैं वे हिंसक हो कर लूटमार कर रहे हैं और इसी राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक संकट को "वेनेजुएला संकट 2018" के नाम से जाना जा रहा है।

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