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भारत की पर्वत श्रेणियां जो भारत को दो भागों में बांटती है

भारत में अनेक पर्वत श्रृंखलाएं हैं जिनमें से यदि हम मुख्य रूप से नाम लें तो जम्मू कश्मीर में काराकोरम पर्वत श्रृंखला, वहीं दिल्ली के पास अरावली पर्वत श्रृंखला स्थित है। वहीं यदि दक्षिण भारत की बात की जाए तो पूर्वी तट यानी कोरोमंडल तट पर हमें पूर्वी घाट दिखाई देते हैं तो वही मालाबार तट पर हमें पश्चिमी घाट दिखाई देते हैं। पूर्वी घाट की बनावट लगातार एक लय में नहीं है ये बीच से कटे हुए हैं क्योंकि उनके बीच से कृष्णा और गोदावरी जैसी नदियां बहती हैं तो वहीं पश्चिमी घाट की श्रृंखला एक सार चलती है। इस प्रकार भारत में अनेक पर्वत श्रृंखलाएं स्थित हैं जिनका अपना महत्व है लेकिन मूल रूप से हम जिस पर्वत श्रृंखला की बात कर रहे हैं वह भारत के मध्य में स्थित है और भारत को दो भागों उत्तरी भारत और दक्षिण भारत में बांटती है।

उत्तर और दक्षिण भारत के बीच में वैसे तो कई पर्वत श्रृंखलाएं मौजूद हैं जिनमें सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला, मैकाल पर्वत श्रृंखला और कैमूर पर्वत श्रृंखला शामिल है लेकिन यहां स्थित विंध्य पर्वत श्रंखला मूल रूप से भारत को दो भागों में विभाजित करती है उत्तर भारत को दक्षिण भारत। विंध्या पर्वत श्रृंखला को विध्यांचल नाम से भी जाना जाता है जिसका जिक्र भारत के राष्ट्रगान जन गण मन में भी आता है। यह भारत के पश्चिमी मध्य भाग में स्थित एक गोलाकार पर्वत श्रृंखला है और इसे ऐतिहासिक रूप से उत्तर और दक्षिण भारत का विभाजक माना जाता है। इस पर्वत श्रृंखला की विशेष बात यह है कि यह एक सार नहीं चलती बल्कि बीच से कटी हुई नजर आती है और इसमें अनेकों पहाड़ियां, ऊंचे मैदान और पठार भी शामिल हैं। भारत में एक और पर्वत श्रृंखला जो इसके समानांतर चलती है वह है सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला। बात इसकी सीमाओं की की जाए तो दक्षिण में जहां इसकी सीमा सतपुड़ा रेंज बनाती है वहीं इसकी पूर्वी सीमा पर छोटा नागपुर स्थित है।

विंध्य पर्वत श्रृंखला का विंध्य नाम संस्कृत भाषा से जुड़ा हुआ है जिसका अर्थ होता है बाधा डालना। क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से उत्तर से दक्षिण भारत की ओर जाते हुए रास्ते में मुख्य रूप से बाधा डालती है और यही कारण रहा है कि भारत में जितने भी बड़े साम्राज्य रहे हैं उनका दक्षिण में इतना अधिक विस्तार नहीं हो पाया है जैसे यदि हम बात करें मुगल साम्राज्य के दक्षिण में विस्तार की तो बीच में जो एक बड़ी बाधा थी वह विंध्य पर्वत श्रृंखला को माना जाता है। बात प्राचीन समय की की जाए तो इसे आर्यावर्त की दक्षिणी सीमा कहा जाता है क्योंकि इसके पार द्रविड़ सभ्यता का प्रभाव ज्यादा बना रहा क्योंकि विंध्य पर्वत श्रृंखला इन दोनों सभ्यताओं के बीच में स्थित रही।

विंध्या पर्वत श्रृंखला को विंध्यांचल इसलिए कहा जाता है क्योंकि विंध्य के साथ अचल शब्द जुड़ा हुआ है जो एक संस्कृत शब्द है तथा जिसका हिंदी में अर्थ होता है पहाड़। क्योंकि इसमें पहाड़ों की एक श्रृंखला बनती प्रतीत होती है। विंध्य पर्वत श्रृंखला भारत में प्राचीनतम समय से मौजूद है और प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। यह भारत की सात सबसे पवित्र माने जाने वाली पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। हालांकि अन्य प्रमुख श्रृंखलाओं की अपेक्षा इसका आकार छोटा है। विंध्य पर्वत श्रृंखला का निर्माण प्लेट विवर्तनिकी द्वारा ना होकर नर्मदा की रिफ्ट वैली के चलते हुआ है।

वही बात यदि इसकी लंबाई की की जाए तो गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार तक फैली इस पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई 675 मील के लगभग है तथा गंगा की अनेकों सहायक नदियां विंध्य रेंज में स्थित हैं क्योंकि यह गंगा-यमुना बेसिन में स्थित है जिसमें चंबल, बेतवा, केन इत्यादि नदियां बहती हैं। इस प्रकार विंध्य पर्वत श्रृंखला वह श्रृंखला है जो भारत को उत्तर और दक्षिण दो भागों में स्पष्ट रूप से बांटती है।

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