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खिलजी वंश का संस्थापक कौन था?

भारत के इतिहास में अनेकों साम्राज्य बने और तबाह हुए हैं और इन पर अलग-अलग समय में अलग-अलग वंशों ने शासन किया है। इनमें से ही एक वंश था खिलजी वंश। खिलजी वंश ने दिल्ली सल्तनत पर 1290 से 1320 ई के बीच शासन किया तथा किडोखरी नामक एक शहर को अपना अपनी राजधानी बनाया था।

खिलजी वंश का शासन गुलाम वंश के बाद स्थापित हुआ। 13 जून 1290 को जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने गुलाम वंश के शासन को समाप्त करके खिलजी वंश की स्थापना की थी व इसका संस्थापक बना। हालांकि जलालुद्दीन को लगभग 6 वर्षों बाद उसके भतीजे (जो कि उसका दामाद भी था) अलाउद्दीन खिलजी ने उसकी हत्या कर दी थी। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी 1296 में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा।

खिलजी वंश से ही एक ओर महत्वपूर्ण व्यक्ति जुड़ा है जिसे अमीर खुसरो के नाम से जाना जाता है जिसका असली नाम मोहम्मद हसन था। अमीर खुसरो को अपने प्रसिद्ध नाम तोता ए हिंद के नाम से जाना जाता है और इससे जुड़े प्रश्न परीक्षा में अक्सर पूछे जाते हैं। अमीर खुसरो का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं के पास 1253 में हुआ था और वह संत शेख निजामुद्दीन औलिया का शिष्य था। अमीर खुसरो की विशेष बात यह है कि उसने सितार और तबले का आविष्कार किया था जिस कारण उसका नाम कला के क्षेत्र में इज्जत से लिया जाता है।

अलाउद्दीन खिलजी मुख्य रूप से खिलजी वंश का सबसे महत्वपूर्ण सम्राट बना। उसके बचपन का नाम अली था और उसे गुरशास्प भी कहा जाता था। अलाउद्दीन खिलजी के बारे में विशेष बात यह है कि उसने नगद वेतन और स्थाई सेना की नींव रखी थी यानी कि भारत में दिल्ली सल्तनत काल में सबसे पहले सेना को नगद वेतन को दिए जाने की शुरुआत अलाउद्दीन खिलजी ने की और यही कारण था कि उसके पास सबसे विशाल स्थाई सेना समय के साथ बन गई थी। इसके साथ ही अलाउद्दीन खिलजी ने घोड़े को दागने यानी कि उन पर निशान लगाने की प्रथा भी शुरू की। साथ में सैनिक जब भर्ती होते थे तो उनका हूलिया लिखा जाता था ताकि उनकी पहचान की जा सके। इस प्रकार घोड़ा और अपने खुद के सैनिकों की पहचान के लिए यह प्रथा अलाउद्दीन खिलजी ने शुरू की।

हालांकि अलाउद्दीन खिलजी के समय में किसान काफी दुखी रहे क्योंकि उसने भू राजस्व की दर को बढ़ा दिया था जिसे उसने लगभग आधा कर दिया। यानी जितनी भी उपज होगी उसका आधा अलाउद्दीन खिलजी खुद रखता था। इसके अलावा लूट का जो माल होता था जिसे खम्स नाम से नाम से जाना जाता था उसका तीन चौथाई भाग भी अलाउद्दीन खिलजी ने लेना शुरू कर दिया था।

भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए उसने बहुत से प्रयास किए जैसे यदि कोई व्यापारी बेईमानी करता था तो उसे रोकने के लिए कम दी गई वस्तु के बराबर I उसके शरीर का मांस काट लेने का आदेश दिया गया था और बहुत ही कठोर स्तर पर मूल्य नियंत्रण प्रणाली को देश में लागू किया गया था।

देश में अच्छी तरह से अर्थ व्यवस्था चल सके और मूल्य नियंत्रण में रहे इसके लिए अलाउद्दीन खिलजी का मानना था कि व्यापारियों पर नियंत्रण अपना आवश्यक है इसलिए उसने कुछ पद बनाए जैसे दीवाने रियासत जो कि व्यापारियों पर नियंत्रण रखा करता था, शहना ए मंडी जो बंजारों का अधीक्षक था बरीद जो बाजार के अंदर घूम के निरीक्षण करता था और एक गुप्तचर होता था जो गुप्त सूचनाओं प्राप्त किया करता था जिसे मुनहियान कहा जाता था।

यदि प्रसिद्ध निर्माण की बात करें तो अलाउद्दीन खिलजी ने जमाया खाना मस्जिद, अलाई दरवाजा, सीरी का किला तथा हजार खंभा महल इत्यादि का निर्माण करवाया था। उसके द्वारा बनवाए गए अली दरवाजे को इस्लामी वास्तु कलाकार रतन कहा जाता है। भारत में दैवी अधिकार का जो सिद्धांत था यानि भगवान द्वारा सम्राट को यह अधिकार दिया गया है कि वह लोगों प्रशासन करें, भी अलाउद्दीन खिलजी ने ही सल्तनत में चलाया था।

अलाउद्दीन खिलजी ने खुद को ही सिकंदर ए सानी की उपाधि दी थी और मलिक याकूब को दीवाने रियासत बनाया। अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक नीति के बारे में हमारे पास बहुत सी जानकारी उपलब्ध है जो कि हमें तारीख के फिरोजशाह से मिलती है अलाउद्दीन खिलजी करों को लेकर बहुत ज्यादा ध्यान दिया करता था इसलिए उसने दो नए कर भी लगा दिए थे जैसे दुधारू पशुओं पर एक कर लगाया जाता था जिसे चराई कर कहा जाता था और वहीं घरों और झोपड़ियां पर एक कर लगाया जाता था जिस गढ़ी कर के नाम से जाना जाता था।

सुल्तान बनने के 20 वर्षों बाद अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई। उसके बाद कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी गद्दी पर बैठा। मुबारक के बारे में प्रसिद्ध है कि उसे नग्न औरतों व पुरुषों की संगत पसंद थी और वह कभी-कभी राज दरबार में स्त्रियों के वस्त्र पहनकर भी आ जाता था व कभी नग्न होकर दरबार के बीच दौड़ा करता था। वह एक अच्छा शासक भी नहीं साबित हुआ। बावजूद इसके उसने खुद को खलीफा की उपाधि दे रखी थी। ये सब वजह हुई कि धीरे-धीरे सभी मुख्य व्यक्ति उसके खिलाफ होने लगे और उसी के वजीर खुसरो खां ने सन 1320 में उसकी हत्या कर दी और खुद दिल्ली की गद्दी पर बैठ गया।

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